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सरल-तरु-पत्त-पल्लव-पसरिय-घण-मूल-कंदलि-सणाहं। सरस-फणासासिय-तरुयरग्ग-सुणिविट्ठ-सउणि-गणं।।११०४ ।। णह-गमण-जणिय-गुरु-खेय-तिब्व-र(१७०अ)वि-कर-निरोहियंगाहि। निवसिज्जइ जत्थ धरिय-गेय-किन्नर-जुवाणीहिं।।११०५।। दाढग्गुक्खिणिय-सुयंध-सरल-तरु-कंद-मूल-निवहेहिं। . निवसेजइ कोलउलेहिं जत्थ कय-कद्दमंगेहिं।।११०६।। दिढ-दंत-कोडि-मोडंत-णिविड-घण-सरल-कडह-संघायं। तरु-साहोलंबिय-कर-सुगयओ निवसए जत्थ।।११०७।। दप्पिट्ठ-कोल-घुरहुरिय-भीय-संकोडियंग-कुंभयडो। जत्थ पलाएइ करी मोडतो विडव-संघायं ।।११०८।। इय एरिसं किसोय(१७०ब)रि ! वसंत-कंदप्प-केलि-भवणं व्व। किन्नर-गंधव्व-सुजक्खण-सेवियं तं वणं दिढं।।११०९।। पुव्वभव-कय-निवासो छुह-तण्हा-सुसिय-पहिय-संतोसो। रुद्ध-रविकर-पवेसो बालाए वड-दुमो दिट्ठो।१११०।। बहु-सउण-गणावासो णिहिय-जडत्तो सुपत्त-परिवारो। गहिरो अलद्ध-मज्झो सुपहु व्व थिरो थिरावासो।।११११ ।। दद्रूण वडं चिंतइ सच्चं एसो दुरंत संसारो। कम्म-कय-चित्तरूया सरंति संसारिणो जत्थ।।१११२।। जा वच्चइ थोव-प(१७१अ)हं सुव्वय-जिण-समवसरण-भूमीए। ता पिच्छइ तं ठाणं जत्थ पुरा पावियं मरणं ।।१११३ ।। अवि यपुव्व-भवंतर-कलिया विन्नासिय-सयल-कम्म-संघाया। विसयाहिलास-पिय-सुह-परिसेसिय-दारुण-विवाया।।१११४ ।। उवसम-सीयल-सलिल-प्पवाह-विज्झविय-कोह-जलणा वि।
उग्ग-तव-जलण-जालालि-दड्ड-घण-कम्म-वण-गहणा।।१११५।। १. संप्पाय.
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