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पच्चंत-वास-गुरु-दुक्ख-दुखिया सयल-सुक्ख-परिचत्ता। निय-सयण-वग्ग-चुक्का चि(८३अ) हामि नरिंद ! दोक्खेण॥५८५। ताव कुलीणा 'गुरुया विउसा सोहग्ग-रूय-गुण-कलिया। सुह-सील-धम्म-निरया जा णिय-ठाणं न मुच्चंति।।५८६।। अण्णं चहिमगिरि-वर-प्पसूया' जय-पयडा किल जणम्मि सुपवित्ता। सुहिया वि सया महिला वहइ जलं अमर-सरिय व्व।।५८७।। ता राय! नियय-दुक्खं संसिजइ कह जण[८३बस्स एमेव। पत्थावमुवगयं तुज्झ साहियं गउरवाहितो।।५८८।। सहि ! चंदलेहि ! तइया तए वि जं पढम-दंसणे पुढें। तुह साहियं किसोयरि ! तं एवं अवसरावडियं ।।५८९ ।। इय एरिस-दूसह-दुक्ख-दुक्खियाए मए मयंकमुहि !। जीविजइ जं तुझं पणय-परिओस-वस-विसयं ।।५९० ।। कुल-देवयाए वयणं न पालियं जं(८४अ)मए तया अहवा। तं एवं दूसह-वज-वडण-दुक्खं मए पतं ।।५९१ ।। ता जे विरइ-विरत्ता रइ-मय-मत्ता विलास-गय-चित्ता। विसयासत्ता सत्ता पत्ता ते पउर-दुक्खाई।।५९२।। दिढे वि विसय-सुह-कारणम्मि मह देव एरिसं दुक्खं । जइ सेविजंति पुणो ता दुक्खं देंति नरयम्मि।।५९३।। विसय-पसाएण मए एरिस-दुक्खाइं (८४ब) देव ! पत्ताई। "सयं संबुद्ध-इमीए कह विसय-सुहं उवइसामि ?।।५९४ ।। एसा वि तुज्झ धूया सुदरिसणा मुणिय-पुव-भव-दुक्खा । मह वयणेण नराहिव! परिणयणं कह व इच्छेइ ?।।५९५ ।। सत्थत्थ-कला-विण्णाण-जाणिरी मुणिय-जिण-मय-विसेसा।
संसारुव्विग्ग-मणा परम्मुही विसय-सोक्खाणं ।।५९६।। १. गरूया. २. प्पसूता ३. नयरम्मि. ४. सुबुद्ध.
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