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________________ ता मा कुण उव्वेयं निरत्थयं सुयणु ! जणणि(५५ब)जणयाणं। अन्नं पि जं तुम भणसि तुज्झ सव्वं करावेमि।।३९३ ।। सुणिऊण राय-वयणं सुदरिसणा भणईताय ! निय-चित्ते। एमेव सोय-जणणं कह करसि निरत्थयं खेयं ।।३९४ ।। जो जाणइ जस्स गुणे सो तं दूरट्टियं पि आयरइ। गयण-ट्ठिए वि चंदे कुमुय-वणं पावइ पबोहं।।३९५ ।। सो सोहणो त्ति धम्मो जो किजइ दिट्ठ-पच्चय-गुरुहि। ता कह कीरउ धम्मो अमुणि(५६अ)य-गुण-गुरु-सगासाओ।।३९६ ।। सुगुरूवएस-रहिओ परलोय-हिओ न होइ सो धम्मो। इह-लोए वि हसिजइ अगूढ-गुज्झं 'व सिहि-नट्ट।।३९७।। अन्नं चदुहियाण दुत्थिया णं जइ दाणं देसि निय-विभूईए। ता किं तेणऽम्ह फलं तुज्झ वि सो ताय! खलु धम्मो।।३९८ ।। लोए एस प(५६ब)सिद्धी दिण्णं पुत्तेण लब्भए दाणं। अण्णो भुंजइ भोजं अन्नो कह पावए तित्ति? ।।३९९ ।। ता खलु सयं सुपत्ते काले खेत्ते वि सोहणं दाणं। भावेण ताय ! दिन्नं बहु-फलं अत्तणो होइ।।४०० ।। अह कारवेसि जन्ने मज्झ कए ताय! धम्म-कजेण। जन्नेण कह(५७अ) धम्मो जत्थ हुणिजंति बहुजीवे।।४०१ ।। जन्ने हुणेवि जीवे निरावराहे वि साहिओ धम्म। सग्गं सुहेण गम्मइ तवेण किं ताय ! कायव्वं ।।४०२।। जइ पंचिंदिय-वह-बंधणेहिं वच्चंति माणवा सग्गं। ता जो रक्खइ जीवे सो वच्चइ ताय ! किं नरयं ।।४०३ ।। अह भणसि जन्न-हुणिया सुरालयं जंति एत्थ ते पसवा। ता वण-दवग्गि-दड्डा पसवा वि सुरालयं जंति।।४०४।। १. व्व २. पिचिंदिय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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