________________
१२
हैं । पैदल नगरचर्या करते हैं। यहां राजसमूह दिखाई देता है । यहाँ कवि भिन्न-भिन्न राजाओं की शृंगार चेष्टा का वर्णन करते हैं ।
विद्या के बल पर अपना रूप परिवर्तन करके वसुदेव स्वयंवर - मण्डप में प्रवेश करते हैं । राजपुत्री रोहिणी का स्वयंवर रचा गया है । उसी समय शुभ विवाह के मंगल परिधान में हाथ में वरमाला के साथ रोहिणी प्रवेश करती है । सब राजा विह्वल हो उठते हैं । अनेक राजाओं का परम्परित वर्णन वेगवती ने किया, किन्तु रोहिणी खुश नहीं है । चंद्र की निकटवर्ती रोहिणी की भाँति राजकुमारी रोहिणी चन्द्रसमान तेजस्वी वसुदेव को देखकर प्रसन्नचित्त हो जाती है और पति के रूपमें उनका वरण करती है ।
वसुदेव ने तो रूप परिवर्तन किया है । यह जानकर विरोध उठता है । राजसैन्य इकठा हो गया, युद्ध हुआ, तुमुल युद्ध |
सब दलों के साथ युद्ध करने के बाद विजयी वसुदेव पर पुष्पवृष्टि होती है । फिर कोई जादूगर क्षत्रिय पुरुष की कीर्ति की विडम्बना करता है । फिर युद्ध, युद्धवर्णन और विजय की कथा | आगे चलते चलते अनेक कन्याओं के साथ विवाह ।
फिर से मथुरा के प्रति आगे प्रस्थान | सर्ग - ११ कनकानिधुवन :
यह सारा सर्ग वसुदेव- कनकावती के संभोग शृंगार का वर्णन करता है । नायक की चेष्टाएँ, नायिका के विभिन्न प्रतिभाव आदि का निरूपण, वर्णन कवि करते हैं । दूरे सर्ग में मुक्त शृंगार, कामचेष्टाएँ आदि का प्रायः वाच्य में निरूपण किया गया है । अन्त:पुर में कामक्रीडा के बाद वनविहार और वन-उपवन क्रीडा का वर्णन कवि देते
सर्ग : १२ - सन्ध्योपश्लोक मंगलगान :
इस सर्ग में हमें अति लम्बे भावावेश सभर वर्णन मिलते हैं । प्रकृति के साथ एकरूप मानव भावों का सायुज्य दिखाया जाता है ।
1
सन्ध्या, अन्धकार, चन्द्र और इनके बीच प्रकृति तथा उसमें मानव का विहार यहाँ वर्णित है । अनेक रसों का निरूपण किया गया है ।
प्रात:काल का वर्णन, बन्दीजनों का गान इत्यादि भी हैं ।
Jain Education International
यहाँ काव्य के १२ सर्गों की समाप्ति होती है । १०६४ श्लोक वाले काव्य की समाप्ति मंगलान्त गान के साथ सम्पन्न होती है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org