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________________ ७१ रत्नमंडनगणिकृत रंगसागर नेमि फाग झगमग झगमग झालि झबूकई रिमिझिमि रिमिझिमि झंझर झणकइं, झीलइ झाझइ नीरि तु, धन धन० सुरभि सलिलभरी सोवन सींगी, केसव सुंदरि सकल सुरंगी, सींचई नेमिसरीर तु. धन धन० ३८ इण परि विविध विलासे रमणीय, नेमिकुमर मनि अचिल जाणीय, पाणीय रमलि मझारि तु, धन धन० वानि जिसी हुइ चंपकनी कली, रूपि करती अपछर नीकली, नीकली बाहिरि नीसरी, सरीरि करइं सिणगार, पहिरइं चीर मनोहार, रमणि कुसुम-सुकुमार. [धन धन० ३९] नेमि पाग पडी इम भणइ, अम्ह भणी करि-न पसाउ, साव सलूण तुं मानि-न मानिनी परिणउ भाउ, नेमि कदाग्रह भागउ लागउ मौननइ रंगि, तव मनि मानिउं जाणीय राणीय ऊलटई अंगि. ४४ [४०] [इत्यानंदेन सुंदर्यो मेदिनीमंडनं पुरी, आगत्य सत्यभामाद्याः श्रीकृष्णाय न्यवेदयत्. ४१] इति रंगसागरनाम्नि श्री नेमिजिनफागे विवाहाकारवर्णनं द्वितीय खंडं. त्रीजो खंड [गौरी पीनपयोधरा शशिमुखी बंधूकरक्ता धरा हीरालीरमणीयदंतकलिता वर्णोल्लसल्लोचना, कन्या कोमलपाणिपादकमला मत्तेभलीलागतिगोविंदेन मुदोग्रसेनसविधे राजामती मार्जिता. १] गाजंती गजगेलिगंजनगति गोरी गुणे आगली, सारी साव सलावणी सरसती सा दीसती सुंदरी, मागी नेमिविवाह कारणि करी कन्या कुलीणी कलावंती कुंअरि उग्रसेनकुलनी गोविंदि राजीमति. २ रासक उग्रसेनभूपति-संभव कन्या, धन्या गुणह निधान रे, गोविंदि मागी सुभगिमागुणभाजन राजीमती अभिधान रे. ३ सकल मंगलकर लेइय अलगन लगन लगन उच्छाह रे, अलंब पटउलां बांधीइं मांडवि मांडवि माड विवाह रे. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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