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________________ ७० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह सभाणी नारि, कुचभरि करई परीरंभ रंभा वनि वनि कुसुम रोमांकुर कुरबक धरई अपारि. २८ पूरई षट्पद ऊलट फूलि [...]टयां वनखंड, त्रिभुवन मदन-महीपति दीपि अति प्रचंड २९ काव्य उढी चादर चीर सुंदर कसी दीली कसो कांचली, आंजी लोचन काजले सिरि भरी सीमंत सिंदुरना, लेइ साथिई नेमिकुंवर सवे गोविंदनी सुंदरी, वाडीए गिरिनार डूंगर गइ सिंगारिणी खेलिवा. ३० रासक वसंतखेलणि लेई साथिई देवर, देवरमणि सम गोरी रे, पहुतली गिरिनार गिरि अंबावनि बावनिचंदनि गोरी रे. ३१ अनंग-जंगम-नगरा बहुविध परि परिणेवा मनावणहारी रे, ललाटघटित घनपीयलि कुंकुम कुमर रमाडे नारी रे. ३२ आंदोला कुमर रमाइ नारि, हींडोले हींचणहारि, उच्छंगि बइसारी ए, सयरि सिंगारी ए, थाइ मणि थोर, दोलइ दीहर दोर, कंचण-चूडी ए, रणकई रूयडी ए. ३३ देउरमार उरवरि हार, वउलसिरी सुकुमार, नव नव भंगी ए, कुसुमची अंगी ए, त्रीकम - तरूणी तुंग, विरचइ सुचंग, अति अणीयालउं ए, खूप खूणालउ ए. ३४ Jain Education International फाग खूप खूणालउ विचि विचित्र कुसुम रचइ खेमि, अतिहि अलंकृत कलीहरि हरिरमणी लिई खेमि. ३५ कनक चउकीवट मांडती [...] हा [स्य ] रस पूरि नेमि रमाडई सोगठे, सोग ठेसई सवि दूरी. ३६ अढईआ मलयानिल पाडित जल-उकली. उकली चतुर दुआरि तु, धनधन तेह जलि विलसतई सवि अलवेसरि, विगलित काजल कुंकुम केसरि, ति सरि सीहरि नारि तु, धन धन० ३७ वनखंडमंडन अखंड खडोखली, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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