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________________ रत्नमंडनगणिकृत रंगसागर नेमि फाग काव्यं Jain Education International कंसध्वंससमेत्य दुर्द्धरजरासंधत्रिखंडाधिपे सद्यः क्रोधमुपागते यदुमहीपालाः समुद्रादय:, आदाय स्वतुरंगवारणपरीवारादि वारांपतेराशायां क्षितिमंडनं सजलधिसौराष्ट्रदेशं गताः. ३७ इति रंगसागरनाम्नि श्री नेमिफागे जन्मोत्सववर्णनं प्रथम खंडं. खंड बीजो वासतवे, श्रीनेमिप्रमुखप्रौढयदूनां शक्रादिष्टां पुरीं चक्रे श्रीद: सौराष्ट्रमंडले. रासक सोरठमंडलि धनदि इंद्र- आइसिं कारण नब[नव ?] बारी रे; द्वारिका नगरी सोवन धवलहरे धवलहरे सागरि-हबारी रे. १ उत्तुंग तोरण मणिमंडप मनोहर हरगिरि - हरावणहार रे; ती नगरी अति रूअडां जिनहर, हरई रयणि-अंधकार रे. २ आंदोला हरइं रयणि-अंधकार, झलहलतां मणिसार, हेम धवलहरू ए, कनक कलहेम धरू ए; कडि आवा खंभ, कोरणी आदला थंभ, रंभ कि पूतली ए, मणिभमरी भली ए, ३ दीसे नगरि युवान, सुंदर सोवनवान, अनंग-संजीवनी ए, घरि घरि पदमिनी ए; यादव पुरवासी, चहुंटां चउरासी, सोवन - पावडीए, जलभरी वावडी ए. ४ फाग वाविहि रंभ समाणीय पाणीयहारि सुरंग, गउख जाली मतवारणां बारणां तोरण जंग. ५ नवरंग चंद्रआ फालीए मालीए खेलई नारि, अवर ऊपम देवा टलई, वाटलई हेमपगारि. ६ रयण - कोसीसां-उलि रे पोलि रे कनककपाट, मणिमय तोरण ऊपरि द्रू परि अविचल घाट. ७ खट रितु मंडित उपवन पवन हींडोलित डाल, तरूअरि परिमलवासित नासित रविकरवाल. ८ ६७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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