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________________ रत्नमंडनगणिकृत रंगसागर नेमि फाग आंदोल जिन अभिषेकई रंगि, सोवनगिर-शृंगि, सकल सुरासुरू ए, भाविइं भासुरू ए. समुद्रविजय आवास, मूंकई जननी पासि, जाइं सवे सुरवरू ए, अंबरि तरूवरू ए. १८ माणिक हीरइ जडिउं, सार सोवन घडिउं, पउढणि पालणउं ए, तसु रलीआमणउ ए. माणिक-रामेकडां, ऊपरि कनककडां, हांसरू आलीइ ए, तलइ तलाइ ए. १९ फाग नवल तलाइ पउढणि जादर वी[ची?]र, अंगि सुंआलिम-आगलं आंगलं नवरंग हीर. २० डावई अंगि चडावई रंगि लडावई देवि, वारइ[वारणइ ?] नेमिह वार दोष निवारई केवि. २१ काव्यं प्राप्ते द्वादशमे दिने यदुपतिना कार्यचर्योत्सवैः सत्कृत्यासनदानपानविधिना तेषां समक्ष नृपः, राज्या सार्ध्वम्अरिष्टनेमिरिति तन्नामाभिरामं ददे नेमिर्लालितपालित: सुकियत: कालाद्ययौ यौवनं. . २२ कायवर्णनं रासक नेमिकुंअर-अंगि अवतरिउं यौवन सोवन विण सिणगार रे, तव मनि मोहइ सुरनररमणी रमणीय रूपभंडार रे. २३ ब्रह्मारइं करतां नवउं ए सामलवन मछवननु हुं अनंग रे, नीलकमलदल तोलि सुंआलिम कालिम-गुणधर अंग रे. २४ आंदोल कालिम-गुणधर अंग, पगतलि अलता रंग, केलीथंभ कूअली ए साथल जूंअली ए, कटि जिसिउ केसरि-लंक, नाभी गंभीर निकलंक, उरवरि उन्नतू ए श्रीवच्छ लंछितू ए. २५ कुसुमकली जिम अति आंगुलडी दीसंति, कणयर-कांबडी ए, लांबी बेह बाहडी ए, संख सरीखउ कंठ प्रगटिउ गुहिर उकंठ, खंध धुरंधरू ए, अधर बे रंगधरू ए. २६ फाग अधर कुंअर केरा तुडिं रातुडिं चडइं प्रवाल, कंपइ डालिअ जीभई, जीभई विजित प्रवाल. २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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