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________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह श्लोक: कुमारे ब्रह्मचर्येऽपि, यया मे रंजित: पति:, सा वीक्ष्येति ययौ सिद्धिं, पूर्व राजीमती सती. ८४ अद्वैउ राजीमती नेमिकुमार, यादवकुल सिणगार, कारणि अवतरियां ए, त्रिभुवनि विस्तरियां ए; धन्य ज ते नरनारि, जइ चडईं गिरि गिरनारि, कुंडि गयंद मइ ए, नीरइं जिन न्हवइ ए. ८५ पूजइ मनचइ रंगि, आंगीय नव नव भंगि, स्वामीगुण थुणइ ए, स्तुति इणि परि भणई ए; 'अकल अमल सर्वज्ञ, नमइं निरंतर धन्य, जयजय पावनु ए, सहजि सनातनु ए.' ८६ काव्यं (शिखरिणी) सनातन्यैः पुण्यैः प्रणतचरण: श्रीयदुपतिः, समं राजीमत्या शिवपदमगाट्रैवतगिरी, स च श्रेयोवल्लीनवधनसमो मय्यपि जने, परब्रह्मानन्दं प्रदिशतु चिरं नेमिजिनप:. ८७ रासउ श्री जिनपति भारतीय प्रसादिहिं, अंतरंग करि केसरिनादिहिं, चरित रचिउं मनरंगि. लच्छिविलासह लीलकमलं, गलइ मोह सांभलतां विमलं, छेदइ कलिमल भंगि. ८८२० श्री यादवकुलभूषण हीरो, मेह जेम गाजइ गंभीरो, रूद्ध-कुसुमसर वीरो. तूं अम्ह स्वामी सामल धीरो, गज जिम सबलु सहजि संडीरो, सुरिज सा भातु सरीरो. ८९ रिपु अंतर हेलां निरजणीया, विषम मोह मद जिणि रणि हणिया, नेमीसर संवादि. यदुकुलमणि सा राजल राणी, मा तूं सुभटधरणि जगि जाणी, निश्चल शिवप्रासादि. ९० 'क्य' अक्षर जिम बेतिहिं मिलीया, 'सुंदर' परम ब्रह्म सिउं मिलीया, दुःखवर्जित विलसंति. रसि ज नेििजण_रय मच्छदिहिं, कृतमति भणइ मुणइ आणदिहि, तसु मंगल नितु हुति. ९१ २०. आ पछी श्री महावीर जैन विद्यालयनी प्रतमां नीचे मुजब पंक्ति छ : चरणकमलि तुह्म भृग नेमीसर, वीनवे आचार्य माणिक्यसुंदर, सुललित गुणभंडार. ए प्रत अहीं अटके छ, पछीनू पार्नु नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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