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माणिक्यसुंदरसूरिकृत नेमीधरचरित फागबंध
रासु हर नट्टारंभि नचाविउ गौरी, गौरी लोचनभंगि रे; मुकुंद वृंदावनि नचाविउ गोपीइ, लोपीय लाज अनंगि रे. ७५ सावित्री ब्रह्मा आकुलीउ, कलिउ रोहिणि चंदु रे; नारि-आधारि हिं मयणि वदीता, जीता सुर नर इंदु रे. ७६
. अद्वैउ जीता सुर नर इंद, पणि तूं नेमि जिणिंद, मयणि न छाहीउ ए, नारि न वाहीउ ए; देव भणइ 'तूं देव !, धर्म प्रकटि प्रभु ! हेव, भवियण जिणि तरइं रे, भववनि नवि फिरइं ए. ७७ प्रभु ! तूं लीलविलास, कीरति जित कैलास, साचउ शंकरू ए, सिद्धिरमणि वरू ए'; इम स्तवी देव पहूत, धम्मभारि प्रभु जूत, दान संवत्सरू ए, दिइ गतमत्सरू ए. ७८
फागु गतमत्सर हिव जिनवर, नवमइ रसि संलीन; रेवइ संजम आदरइ, करइ विहार अदीन. ७९ दिवसि पंचावनि पामीय, स्वामीय केवलज्ञान; विरचइ मिलीय देवासुर, समोसरण प्रधान. ८०
श्लोक: प्रधानं मदनं हत्वा, मोहराजं विजित्य च, आप्तछत्रत्रयो नेमिर्जीयाद् विश्वप्रधानधी:. ८१
रास
प्रधान प्राकार त्रिनि सुरि रचि निलइ, रूचिनिलइ जिम रवि चंद रे; चउविह धर्म प्रकासिउ जिनवरि, हरि-मनि हुउ आणंद रे. ८२ पीय देखी राजल मनि गहिगही, गहिगही लइ संजमभार रे; पामिय सिवसुख परिहरि राजमइ, राजमइ नेमीकुमार रे. ८३
१९. रूचि निलई.
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