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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
फाग
वलिउ नेमिकुमार तु, मार- निवारण" जाम; राजीमती अति आकुली, ढलिय धरातलि ताम. ६५ सखी सींचई चंदनजलि, कदलीदलि करइ वाउ; वलिउं चेतन जाणिउ, वलिउ यादवराउ. ६६ आर्या यादवराजवियोगे लूताभिहतेव मालतीमाला, म्लाना मदनकराला विलपति राजीमती बाला. ६७ रासु राजीमती बाला विविह परि विलपति, पतिवियोगें अपार रे; फोडइ कंकण विरहकराली, रालीय उर तणो हार रे. "धाउ धाउ जाइ जीवन मोरडा, मोरडा ! वासि म वासि रे; प्रीय प्रीय म करिअ रे बापीयडा !, प्रीयडा मेहनइ पासि रे. अढै
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प्रीडा मेहन पासि, वीजलडी नीसासि; सर भरियां आंसूयडे, हिव हंसलडा ! उडि ए. सिद्धिरमणि प्रिय राचि, कहीय न पालइ वाच, तूं त्रिभुवनपति ए, कुण दीजइ मति ए ? ७० आठ भवंतर नेह, कांइ तई कीधउ छेह ? यादवराइ, मइ ए, बोलइ राइमइ ए, सयरि धरइ संताप, वलि वलि करइं विलाप, राजल टलवलइ रे, जिम माच्छली थोडइ जलि ए ७१
फाग
माच्छली जिम थोडइ जलि, टलवलइ राजल देवि; वलीउ नेमि पहू तउ, पहुतउ घरि तिणि खेवि. ७२ आव्या देव लोकांतिक, कांति करई रविभ्रंति; कर जोडी प्रभु वीनवइ, नवई ते कवित थुणंति. ७३ काव्यं (शिखरिणी)
१७. मार- विडारण, १८. वर.
स्तुवन्ति क्रीडायां मदनविवशायां ननु वशां, सुधाभि: सीची हरिहरविरंचिप्रभृतयः,
परब्रह्मज्ञास्तां विषमविषलहरीमिव वधूं, विधूय त्वं जातस्त्रिभुवनपते ! पातकहर: ७४
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