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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
['गुजराती साहित्यकोश' (खं.१ पृ.३१५) एम नोंधे छे के आ कृति मांडणकृत नथी. एक ज हस्तप्रतमा 'श्रीपाल रास' अने आ कृति बन्ने साथे होवाथी आने पण मांडणकृत मानी लेवानी भूल थई छे. – संपा.]
भीमि विप्र कुसलं कहइ ए, जाउ तम्हि तेह पासि; द्विज आयसि राजा तणई ए, गयु कूबड आवासि. २०१ सुण भला जाता हूआ ए, हरखिउ तुं मन माहि; तु देखी रूप कूबज तणूं, हइइ पडी अति दाहि. २०२ कुसल विप्र इम चीतवइ ए, नल किमि न होइ; मनि संदेह भांजिवा ए, कहइ सलोका दोइ. २०३
वस्तू नल जि नीलज, नल जि नीलज, नल जि नीसत्त, नल विण कोइ न पाडूउ, नल कठोर नल अधम दिज्जइ[कहिज्जइ ?], मेली दवदंती सतीय, तेह तणूं स्यूं नाम लीजइ. वली वली ईम ऊचरइ, विप्र सलोका दोइ; झरइ नयण दुख सांभरी, नीबूं जोई तेई. २०४
ठवणि रोयतु ए कूबडु देखि, कारण कुसलं कहइ किसिउं ए; जो भणी ए सतीय ऊवेखि, गयु नलदु:ख ते मनि वसिउं ए.
___ [क्र.१थी७ : जैनयुग, कारतक-मागशर १९८३, पृ.१६९-७३] ८. जयशेखरसूरिकृत 'त्रिभुवनदीपक प्रबंध'मांथी (जयशेखरसूरिए संस्कृतमा 'प्रबोधचिंतामणि' एक रूपक (allegory) तरीके सं.१४६२मां रचेलो, से ज विषयनो पण स्वतंत्र कृति तरीके तेमणे आ ग्रंथ रचेलो छे. आमां अनेक छंदो जेवा के दुहा, धूपद, एकताली चोपई, वस्तु, सरस्वती धउल, छपय, गुजरी वगेरेमां प्रासंगिक व्यवहारप्रबोध साथे परमहंस अथवा आत्मराजनुं चरित्र प्रकट कर्यु छे.)
[जयशेखरसूरि अंचलगच्छना महेन्द्रप्रभसूरिना शिष्य छे. एमणे संस्कृत-प्राकृतमां केटलीक अने गुजरातीमां आ तथा फागु-स्तवन प्रकारनी केटलीक कृतिओ रची छे जे सं.१४३६थी १४६२नां रचनावर्षो बतावे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.१ पृ.४६-५० अने ४३८-३९ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.११५. आ कृति 'पंदरमा शतकनां प्राचीन गुर्जर काव्य' (संपा. के ह. ध्रुव) अने ‘महाकवि श्री जयशेखरसूरि भा.२' (साध्वी मोक्षप्रभा)मा तथा स्वतंत्र रीते पंडित लालचंद भगवानदास द्वारा संपादित प्रकाशित थयेल छे. - संपा.]
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