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________________ ६४७ विक्रम पंदरमा सैकाना केटलाक जैन कविओनी काव्यप्रसादी (शोक्य पर कवि कहे छे :) सउकि समाण सुरूपिं सापु, वलगी मर्मि करई संतापु, वंजल छायां सापु न फिरई, मूल मंत्र सउकिहं नवि फुरइ. ४२ अठ्ठोत्तर सय अधिकी व्याधि, सउकि कहउं तउ होइ समाधि, काढई रोग न नियडउ थाई, काढउ कहतां सउकि न जाइ. ४३ सउकि-आगि भटके प्रज्वलइ, विणसईं वंस, न धुं नीकलई, आगि ओल्हाहई एकं वारि, सउकि संतापई साते वारि. ४४ (स्नान तर्पण श्राद्धादि क्रिया पर कहे छे के:) माहि कहई नई बाहरि न्हाई, नइ नाला भणि धसमस धाइं, जल ऊलाइं लोक प्रवाहि, किम धोसि ते कलमस माहि ? ११५ कर्मवसिं जीव चिहु गति फिरई, पितर तणउ तिहां तर्पण करई, गंगा-तडि जल ऊरे वीइं, गूजरात तिहां आंबा पीइं. ११६ (विवेककुमार साथे संयमश्रीनो उत्सवपूर्वक विवाह धउलमा वर्णवे छे :) पहिलं थिरुवन थिर हूआं ए, जण जण दीजइं बीडां जूजूआ ए, लेई लगन वधाविउं ए, विण तेडा सहूई आविउं ए. ३२९ प्रवचन-पुरिय वधामणां ए, सवि भाजइं जुंनां रूसणा ए, बईठी तेवडतेवडी ए, दिं पापड सालेवड वडी ए. ३३० गेलिहिं गावइ गोरडी ए, पकवाने भरिइं ओरडी ए, घरि घरि फूलके फिरइं ए, वरवयणि अमिरस नितु झरइं ए. ३३१ कीजई मंडप मोकला ए, मेलीयई चाउरि चाकला ए, गुरवि सजन जिमाडिइं ए, पुरि साद अमारी पाडिइं ए. ३३२ वर शृंगारिउ रथि चडइ ए, वाजिव रवि अंबर धडहडई ए, लाडण जोवा जग मिलई ए, सिरि छत्र अमर पासइं ढलइं ए. ३३३ संयम सिरी जग दूलही ए, प्रिय पेखी गुणनिधि गहगही ए, पुहतउ मंडपि सासरई ए, वर बईठउ प्रवचन-माहरई ए. ३३४ कर-मेलावउ बिहउं करइ ए, गुर-जोसी समउ स उच्चरई ए, पावक प्रतिमा पाखली ए, दि बेउ प्रदखिण मनरूली ए. ३३५ लाडण लाडी लहूयडां ए, बे निरूपम रूपिं रूअडां ए, दिवस घणा उमाहिया ए, आणंदिहिं विहसियां बिहउं हियां ए. ३३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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