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विक्रम पंदरमा सैकाना केटलाक जैन कविओनी काव्यप्रसादी
६४५ ६. मांडणकृत 'श्रीपाल रास'मांथी (मांडण श्रेष्ठीए सं.१४९८मां रचेला 'श्रीपाल रास'नी जूनी प्रत परथी एक नमूनो आपीए छीए. श्रीपाल राजा घोडेस्वार थई फरवा जतां कोई तेने राजाना जमाई तरीके ओळखावे छे ते सांभळी पोताने दु:ख थतां ससरातुं सुख छोडी स्वभुजाए सुख प्राप्त करवा विदेशे जवानो निश्चय करे छे.)
[जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.१ पृ.६३-६४ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.३१४-१५. 'गुजराती साहित्यकोश'मां मांडणने कडवागच्छना श्रावक कह्या छे, पण ए संभवित नथी केमके कडवागच्छ पछीथी उत्पन्न थयो छे. - संपा.]
एकदा ए श्रीपाल राउ, चड्या तुरंगमि सांचरई ए; गामडानु अबुझ कोई एक, चहूटउ ऊभु ते वात करइ ए. ७५ पूछइ एकणहू एक पासि, अलवि कूअर ए कहि तणु ए; ते कहइ ए राय-जामात, कुमारि सुणी तिहां मनि घण्यु ए. ७६ सांभली ए वचन कुमारि, रदय दुख गाढू धरइ ए; तुरंगम ए वालीय जाइ, अवास भीतरि पउढी रहइ ए. ७७ पूछीउ ए आवीय माइ, कहि वछ तूं कुणिईं दूहविउ ए; कइ तूय ए दूहवीउ नारि, कइ तूय राइ न मानीउ ए. ७८ नारि तो ए सतीय सुसील, राय तूं दीठईं आणंदीइ ए; सो भणइ, ए म पूछिसिउ माइ, नाम ठाम कुल हारविउं ए. ७९ मा कहइ, ए वालि-न राज, वछ, लेइ सेन सुसरा तणां ए, सो भणइ, ए तेणई नहीं काज; जां नहीं बल मझ भुज तणां ए. ८० जाइतूं ए वदेसि हूं, माई, धन ऊप्राजी राज वालितूं ए; तव कहइ ए कमलप्रभाय, वछ, अम्हि सरसां आवितूं ए. ८१ कुमर भणइ, ए जु तुम्हइ साथि, तु अम्ह पग मोकला नहीय; सुंदरी ए जंपइ ए इम, प्रभ, तम्ह पाखइ आहां रहूं नहींय. ८२ कुमर तिहां ए जंपइ जाम, सुंदरि, सासू-सेवा करू ए; तव कहइ ए सुंदरी त्यांह, प्रभ, तम्ह नवपद रदय धरिउ ए. ८३
७. अज्ञातकृत 'नलदमयंती रास' (ते ज मांडण कविना रचेला जणाता ‘नलदमयंती रास’मांथी एक नमूनो लईए. नल राजा कूबडो थयो छे त्यां दमयंतीना पिता भीम राजानो मोकलेलो विप्र आवे छे अने नलने जोतां ते होवानो संदेह थतां अमुक 'शलोका' बोले छे.)
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