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________________ ६४२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अजिअ स पोतइ पुन्य अम्हारई, अम्ह घरि वली प्रीअ आविउ; देवविमाण जिसी चित्रशाली, तिहां चुमासि रहाविउ. १२ कूर दालि घीअ दिउं भोजन, नित अमी महारस तोलइ; बालपणानं नेह गमिउ सखि, मझ सिउं हसइ न बोलई. १३ अंगि न ऊगटि सुरभि न चंदन, परिमल फूल तंबोल; भोगविलास नवि कथारस, कंत न करई टकोल; १४ घाट पटोली चरणा चोली, नाग निगोदर हार; करिअलि कंकणचूडि झबुकई, पय नेउर झमकार. १५ चंदण सिउं चरचिउं मई अंग ज, परिमल बहुल कपूर; पूगी पान कस्तूरी काजल, सिसि सुरंग सिंदूर. १६ नितु नवनवा करूं सिणगार ज, मणि मोती परवाला; घडि[धडि] खींटली तिलक झगमगतां, टीली झालिझमाल. १७ गीतनाद नव नव रसि परि[नव परि उचरसि], नाटक नृत्य अपार; । पंचम राग वसंत वीणारसि, भ्रमि न सकिउ भरतार. १८ विनयविवेकि वली बोलावू, वालंभ म करि अणाह, हुं आगइ भरमि तां भूली, तुं अति नीठर नाह. १९ ३. हीराणंदकृत 'विद्याविलास रास'माथी (सं.१४८५मां हीराणंदे ‘विद्याविलास रास' रच्यो छे तेमांथी बे-त्रण नमूना लईए. पहेलामां राजकन्या- वर्णन छे.) [कर्ता पीपलगच्छना वीरप्रभसूरिना शिष्य हता. एमनी कृतिओ सं.१४८४थी १४९५नां रचनावर्षो बतावे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.१ पृ.५२-५५ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.४९६. कृति 'गुर्जर रासावली' मा प्रकाशित थयेली छे. - संपा.] तिणि नयरि सुरसुंदर राजा, तसु घरि कमला राणी, सोहगसुंदरि तास तणी धूअ, रूपिं रंभ समाणी; सोल कला सुंदरि ससिवयणी, चंपकवन्नी बाल, कज्जल-सामल लहकई वेणी, चंचल नयण विसाल. १६ अधर सुरंग जिस्या परवाली, सरस[सरल] सु-कोमल बाहु, पीण पयोहर अतिहिं मणोहर, जाणे अमिअ-प्रवाह; ऊरूयुगल करि कदलीथंभा, चरणकमल सुकुमाल, मयगल जिम माल्हंती चालई, बोलइ वयण रसाल. १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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