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विक्रम पंदरमा सैकाना केटलाक जैन कविओनी काव्यप्रसादी
६४३ राजकुंअरि ते तिणि नेसालई, पंडित पासि भणंति, लक्षण छंद प्रमाण कलागम, नाटक सवि जाणंति; घणउं वखाण किसिउं हिव कीजइ, अभिनव शारददेवि; तेह तणउ जे कउतिग वीतउं, ते निसुणउ संखेवि. १८ (आ राजकन्या अने प्रधानपुत्रने साथे भणतां प्रीति जामे छे ते हवे कहे छे.) मंत्रीसरनंदन मनमोहन, नामि लछिनिवास, तेहू तीहइं भणइ मनि-खंति, लहूउ लीलविलास; राजकुंअरिनई मनि वसीउ, देखीअ सरस सुजाण, एक दिवसि ए अक्षर लिखीआ, बोल ए करू प्रमाण. १९ “मइ तरूणी परणीनई, सामी, साचलं करि निय नाम, लच्छिनिवास कहावइ मझ विण, ए तुझ कूडउं काम'; ए अक्षर वांचीनइ हसिउ, मुहतानंदन चीति, मधुरी वाणी बोलइ, “सामिणि, ए सिउं उत्तम रीति.' २०
हिव दूहा; राग सामेरी “सामिणि, सेवक ऊपरिहिं, नीच मनोरथ कांई ? एह वात युगती नही, आथी [आधी] वरइ न थाइ. २१ किहां सायर किहां छिल्लरूह, किहां केसरि सीयाल; किहां कायर किहां वर सुहड, किहां कइर[वण] किहां सुरसाल. २२ किहां सिरसव किहां मेरूगिरि, किहां खर किहां केकाण; किहां जादर किहां खासरूं, किहां मूरख किहां जाण. २३ किहां कस्तूरी किहां लसण, किहां मानव किहां देव; किहां कांजी किहां अमीरस, किहां राणिम किहां सेव. २४ किहां रीरी किहां वर कणय, किहां दीवउ किहां भाण;
सामिणि तुझ मझ अंतरू, ए एवडउं प्रमाण." २५ (आ पछी बंने परणे छे, अने त्यार पछी ते सुंदरीने पियुनो वियोग थयो तेथी विरहिणी विलाप करे छे.)
राग सिंधुओ निसि-भरें सोहगसुंदरी रे, जोइ वालंभ-वाट; निद्रा न आवई नयणले रे, हइअडइ खरउ उचाट. “सुणि, सामीअ लीलविलास, वलि वालंभ विद्याविलास;
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