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विक्रम पंदरमा सैकाना केटलाक जैन कविओनी काव्यप्रसादी
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'गुर्जर रासावली' (संपा ब. क. ठाकोर वगेरे) मां छपायेली छे. अहीं एने आधारे केटलीक पाठशुद्धि करी छे. संपा. ]
संसार देस माहि अरूह अबाह [ असुख अपार], राज करई छई तिहां मोहराउ; चोर चरड फिरतां छइं च्यारि, लूसइं छई ते पुण नरनारि. ५१ रूलीरूली आवइ माणस माहि, एकि दिवस बालापणि जाई; योवनभरि जु पहुतउ किमइ, विषइ-पासि बांधिउ छइ तिमइ. ५२ घर-घरणी पहुती घर माहि [ घरबारि], चींतइ पडिउ सूंथल थइ; ईंधण तउणि तणीअ संपत्ति, तेह कारणि भमइ दीहराति. ५३ बेटा कारणि मानइ जाग, कंदलु करि ते लिइ घर आग; बेटा पाखइ घण दुख धरइ, बेटइ हूंतइ विढि - विढी मरइ. ५४ घरधंधइ पडीउ सहू कोई, कुटुंब मेलावउ खावा होई; खत्र अखत्र कीधां सवि वार, डोकरनी कोइ न करई सार. ५५ जरा भाईं, हिव मईं तूं साति, पहिलिउं दांत करई जि पलाति, त्रिष्णा माडी रहीनई हसी, हिव डोकरू मांगइ लापसी. ५६ धउलुं माथुं, देह जाजरी, वांकउ वांसउ, झुंबईं लालरी, घर हूंतउ ते किहांइ न जाइ, सघला कुटंब उबीठउ थाइ ५७ वडिक क्षुधा पीडिउ छई सोइ, डाकरनी सुधि न करई कोइ; आवउ वहुडी, भणिउं करू माइ, (मु) हु मचकोडी पाछी जाई. ५८ रीसाविउ ते मेल्हइ झाल, सिर धूणइ, मुहि पडई लाल, खूणउ बइठउ खूं-खूं करइ, अजिय स डोकर कहीइं मरई. ५९ चिहुं गतिनुं एह जि विचार, दूख तणा नवि लाभई पार, सुखह तणी जो वांछा करई, पंचम गति ऊपरि सांचरई ६० २. सोमसुंदर शिष्यकृत 'स्थूलभद्र कवित' मांथी
(सं.१४८१मां प्रसिद्ध सोमसुंदरसूरिए कोश्यामुखे स्थूलभद्रनुं वर्णन एक टूंका पण अति मनोहर काव्यमा कर्यु छे. तेमां कोश्या नामनी पूर्व प्रीतिपात्र वैश्या गमे तेटलो हावभाव करे छे पण वैरागी स्थूलिभद्र मानता नथी एटली वातनो काव्यनमूनो अत्र लेवामां आवे छे.) [सोमसुंदरसूरि तपगच्छना देवसुंदरसूरिना शिष्य हता. पण 'सुपसाइ सिरि सोमसुंदरसूरि ' वी पंक्ति कारणे कृति खरेखर सोमसुंदरसूरिना अज्ञातनामा शिष्यनी गणवी जोईए. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा. १ पृ. ५० तथा गुजराती साहित्यकोश खं. १ पृ. ४०१. कृति स्वाध्याय, ओगस्ट १९७५मां प्रकाशित थयेली छे. अहीं पाठशुद्धि-पाठांतरमां एनो लाभ लीधो छे...
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संपा. ]
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