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जूनां सुभाषितो
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कबहुंक माणस लाख लहै, कबहुँक लाख सवाय; कबहुंक कौडि मुल लहईं, जब वाइ वाय- कुवाय. कवित
आप रहें मदमस्त नीरंतर, पाप करें न ठरें कछू प्रानी, निपट्ट कंपट्टकी बात बनायकें, लोकमें आय कहें हम ग्यांनी; कहे कछु ओर करें कछू ओर पें चित्तमें जानत युंही अग्यानी, साहिब आगें तो होयगो न्याय सु दूधको दूध अरू पानीको पानी.
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जे को बाड बिराणी ताणें, सो अपनी क्युं राखें, बोहें बीज धतूरा केरा, अमृतफल क्युं चाखें.
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सतीआं सत न छोडीइं, सत छोडिं पत सतिकी बांधी लच्छमी, बहोत मिलेगी सेउ सतके चिणें भले, कहा असतकी जो पंचनमें पति रही, तौ मानौ पाए
जाय,
आय.
द्राख,
लाख.
कवित
एक अहीरनी चली पयबेचन, पानी मिलाय भइ सपराणी. लोभकें लच्छन पाप करे जीउं जानत हें एक आतमग्यानी; जाय बजारि मइ बेचि दिउं, तव दून भए मनमां हरखाणी, वानरन्याय कीउं अति उत्तम दूधको दूध अरू पानीको पानी.
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जे जेहवी करणी करी ते तेहवां फल लेह, कुडे काम कमाय करि, सांइ दोस म देह.
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सोनो चंदन सप्पुरिस, आपण पीड सहंत, कुल कसवलें जाणीईं, करंत.
परउपगार
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कागा किसका धन हरे ? कोयल किसकुं देय ? जीभ तणें टहुकडई, जग अप्पणी करेह.
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