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________________ ६१० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह सीतल अन्न, जनम पुत्रीनउ, करसण हणउ कुवायजी, वयर विरोध सगा-सु च्यारे, स्वादहीन कहिवायजी. १ लुंण घण कुमाणसां, ईं त्रिलो एक सभाव, जिहां जिहां मांडि वास हो, तिहां तिहां फेडे ठायो. १ ऊणखांण कुमित्रगुण, कीओ सो गत गायो, नीच न जाणे नंम्मयो, बलहट चोपडीयो. १ (पत्र १, खंडित प्रत, मारी पासे) समुद्र तु महोदधि, मोटा-सु ववहार, एक पदार(थ) बेचकर, काए न उतारे खार. ४ सकल छत्रपति बस कीए, आप नही बल बाल, मुर्ख लोक सबलने अबला कतज माल. ५ सीधुडा सर बीटली, हाथे लाल कमाण, मुरख मुरख छुडके, मारा चतुर सुजाण. ६ नर सट देर जगावती, उदीक पडतो कंथ, साग धमक कुसहा अर गज हथीका दंत. ७ सुरा चडे संग्रामकुं, देस पा वली न जोए, मरवाको भे दुर कर, करता करे सो होय. ८ खण खाडो खण वाटलो, खण खापण खण लीह, चांदा सा मन सरजीया, सहु सरखा (न) दीह. ९ आपण आदरीया, उदाउ बजीए नही, जयहर धतुरा वरूए वरवई नही. १० चिंता कीधि कवण गुण, जेणे तन कालो होय, सत आदर संतो(ष) कर, लखो न मीटइ कोय. ११ कडे कटारी असतो, योरू हथीआरी ने जाए, जेआगे कस खोवती, सो लाज सरूहे माय. १२ जेका बाइ झडपडे, उभी रहे कीरोड, जे आगे कस खोलसु, उवटी बाहू मरोड. १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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