________________
५९१
भावप्रभसूरिकृत अध्यात्महरियाली - स्वोपज्ञ बालावबोध सह
(आना कर्ता भावप्रभसूरि विक्रम अढारमा सैकामां थया छे. तेओ मुख्यत्वे करी पाटणमां ढंढेरवाडाना अपासरामा रहेता हता. तेमणे यशोविजयकृत 'प्रतिमाशतक' पर संस्कृत टीका सं.१७९३मां रची छे. तेमनी गुजराती कृतिओ सं.१७९७मां 'सुभद्रा सती रास', सं.१७९९मां 'बुद्धिल विमला सती रास', सं.१८००मां ‘अंबड रास’ अने बीजी नानी स्तुति आदिरूप कृतिओ छे. विशेष माटे जुओ मारो निबंध नामे 'आध्यात्मरसिक पंडित देवचंद्रजी' के जे 'श्रीमद् देवचंद्रजी जीवनचरित्र' ए नामना पुस्तकमां प्रस्तावना रूपे अध्यात्म ज्ञानप्रसारक मंडळ तरफथी बहार पडेल छे तेमां पृ.४ अने तेनी टिप्पणी तथा हवे पछी प्रकट थनार जैन गूर्जर कविओ, बीजो भाग. आ कृतिनो टबो जे स्वरूपमा मळ्यो छे ते स्वरूपमा विरामादि चिह्नो मूकीने अत्र में उतारी मूक्यो छे.
आ कृतिने कोई अध्यात्म-कथलो, कोई अध्यात्म थुइ - स्तुति अने कोई अध्यात्मकथलास्तुति पण कहे छे.)
[भावप्रभसूरि पूर्णिमागच्छना महिमाप्रभसूरिना शिष्य हता. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.५ पृ.१६५-७९ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.२८२-८३. कृति (मूळ मात्र) 'चैत्यवंदन स्तुति स्तवनादि संग्रह' भा.१ तथा भा.३मां छपायेल छे. - संपा.]
उठि सवेर सामायिक कीy, पण बार| नवी दिबूंजी, कालो कुतरो घर मांहिं पेठो, घी सघलुं तइणें पीपुँजी. उठो वहूयर आलस मुको, ए घर आप संभालोजी, निज पतिनें कहेवीरजिन पूजी, समकीतने उजुआलोजी. १
बालावबोध श्री ऐही. श्री महिमाप्रभसूरी सद्गुरू चरणांबूज नमीनइं श्री श्रुतदेवताने मनमांहें ध्याईने अध्यात्मोप(यो)गीनी स्तुतिनो अर्थ करूं छु. ____संसारी जीव बे प्रकारना छे - एक भवबाल्यकाल, बीजो धर्मयौवनकाल. ते मांहि धर्मयौवनकाल प्राणिने अर्द्धपुद्गल कालनी स्थिति उत्कृष्ठी छइं तेणें सदागम गुरूनी देशना पामी तिवारे शुभ विचारणा जागी. ते शुभविचारणारूप सासु, में सुमति नामा (रूप) वहुने शिखामण घे छई. (ए संबंध इति) हे वहुअर, सवेर - प्रभातें अथवा स्ववेलाई – अवसरे उठीने सामायिकव्रत लीधुं पिण संवररूप कमाड देइने आश्रवद्वार रूप बार[ दीधुं नही एटले रूंध्यं नहीं, तिवारे मिथ्वात्वरूप कालो कुतरो मनरूप घरमां पेठो छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org