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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अचरिज एक अनोपम मोटउं, कहतां मनि न समाइं, स्त्री स्त्री-स्युं भोग करंतां, जोओ जामारउ जाईजी. बाल० ३ सघली वरण जाति उतपतिनुं, थानक तेह ज लहीई, तेहनुं भोलउ किणइं न सहीई, वली कुंडलणी कहीईजी. बाल० ४ वाचक धरमसमुद्र पयंपई, हरखित एह हीयाली, दाहिण पासि रमई रलीयाली, भली यंगी लटकालीजी. बाल. ५
[जैनयुग, कारतक-मागशर १९८३, पृ.११७]
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