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________________ ५६८ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह भा.३ पृ.२१३–२२ अने ३७९ तथा गुजराती साहित्यकोश खं. १ पृ. ४४३. आ कृति 'जैन गूर्जर कविओ' मां नोंधायेली नथी. अहीं पण 'श्री सागर' हतुं ते 'श्रीसार' करवानुं थयुं छे. आकृति 'सज्झायमाला भा. १' (भीमसिंह माणेक ) पृ. ४०१ - ०३ पर छपायेली छे. - संपा. ] स्यादवाद मत श्री जिनवरनो तेहनें किम कहीए एकांत, मति एकांत कहे ते मिथ्यात्वी, साखी सघळा सुण हो सिद्धांत. त्रियारूप तिहां न रहे मुनिवर सोलमें उत्तराध्ययन विचार, साधु साधवी वसे एकठा, श्री ठाणांगे पंच प्रकार. जीव असंख्य काजल - टपके पन्नवणा सुत्रे श्री जिनराय, कल्पसूत्रमां नित नदीने लंघे मुनिवर वहिरण काज. श्री ठाणांगे चोथे ठाणे मांस-आहारी नरके जाय, मद्य मांस मधु पिण आचरणा आचारांग कह्यो जिनराज. पांचमे अंगे न करे श्रावक, निषेधे पनरे करमादान, Jain Education International १ स्या० For Private & Personal Use Only २ स्या० ३ स्या० ४ स्या० ६ स्या० निर्वाह तणो पण दीसें, सप्तम अंगें किओ परिमाण. हिंसा न करे त्रिविध त्रिविध मुनि, पांचमें अंगे जुवो हीर, जिनवर तेजोलेश्या उपर शीतोलेश्या मुकी वीर. महावेदना हाथ लगायां वनस्पतिनें थाएं अंग, पडतो मुनिवर तेहि ज पकडें, एह अर्थ छे आचारंग. उत्तराध्ययनें भाख्यो मुनिवर, समय मात्र न करे प्रमाद, दशवैकालिक त्रीजी पोरसी, निंद तणी कीधी मरजाद. अंध भणी पिण न कहे अंधक, दशवैकालिक ए विधिवाद, ज्ञाता अंगे जतीयें भाख्या नागश्रीना अवर्णवाद. सूत्रे देव अविरति बोल्या, हवे पांचमें ठाणे मनरंग, ब्रह्मचर्य तप अति उत्कृष्टो, देव भणी भाख्यो ठाणांग. १० स्या० सूत्र नवि घटें, प्रकरण नवि घटे, प्रश्न पुछीजे तिणनुं एह, ऋषभ बाहुबल शिवपुर पुहुता, एकण दिन भाज्यो संदेह. ११ स्या० सात जणा सु मल्लि दीक्षा, सातमें ठाणें श्री ठाणांग, छठे अंग सात सह्या-सुं, कुण खोटो कुण साचो अंग. १२ स्या० नारी सहस बतीसे ज्ञाता, अंतगडे (सुगडांगे ?) सोल हजार, केशव तणी अंतेउरी भाखी, किम मेलीजे एह प्रकार १३ स्या० ५ स्या० ७ स्या० ८ स्या० ९ स्या० www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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