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________________ ५६२ ज्ञानवैराग्यनां केटलांक अप्रसिद्ध काव्यो १. भोजकृत महावीर जिन स्तवन (हमणां शोध करतां श्री महावीर जिन स्तवन आनंदघनजीना नामर्नु बीचं पण मळी आव्युं छे. आ कदाच भोजकविकृत होय तोपण ना नहीं.) [एम लागे छे के आ स्तवन भोजकृत ज मानवू जोईए. कृति अन्यत्र नोंधायेली नथी ने कविपरिचय अप्राप्त छे. – संपा.] देशी - कडखानी अहो वीर जगवीर व्यवहार निश्चे नये, सुगम करी पंथ शिवपंथ दीनो; एक रूचि-अरूचि जिम अगुण भोजन करे, परिहरे अनुसरे धर्मभीनो. अहो !०१ पंच दर्शन धरे, एक पख आदरे, किम वरे आप निधि दूरवर्ति; कथनरूपी हुआ एह मत जूजूआ, व्योमना फूल जिम छे अमूर्ति. अहो !० २ समय निज ताहरे उभय पख जे धरे, ज्ञानकिरिया करी शुद्ध परखे; चेतनारूप निज-रूप-संपति सदा, अनंत चतुष्टय सही जीव निरखे. अहो !० ३ जेम पाषाणमां हेम, घृत दूधमां, तेल ज्यम तल विषेष रह्यो व्यापी; काष्टमां आग निश्चे लखे लोक सवि, प्रगट प्रत्यक्ष व्यवहार थापी. अहो !० ४ शुद्ध निराकार अविकार निज रूप श्यो, धरत गुण आठ शिवरूप देहे; कर्मपरिणति खरे ज्ञान उदयो धरे, ताम किरिया करे पामि गेहे. अहो !० ५ द्रव्य ने कर्मनो कर्मविरहित भयो, निश्चयाकार चेतन विराजे; एक उपदेश घर वेश तिण अवसरे, अवर जगजाल-संगति न छाजे. अहो !०६ प्रगट ए वात दिनरात आगम वहे, उभय चारित्र विन शिव न साधे; आपी अनंतर परंपरा तिण विधि, एकता थापीए किम विराधे ? अहो !०७ कल्पना कर्मगुण आप चेतन अगुण, सरण थिति बंध गुण विविध गावे; एह विपरीत निज दरस रक्ते सहज, भोज आनंदघन रूप पावे. अहो !० ८ २. ज्ञानसारकृत जगत्कर्तृत्व विषयक पद [अध्यात्मी कवि ज्ञानसार खरतरगच्छना रत्नराजना शिष्य छे अने एमनो कवनकाळ सं.१९मी सदी उत्तरार्ध छे. बहुधा हिंदीमा एमणे पदो ने स्तवनो उपरांत अन्य ज्ञानात्मक, ऐतिहासिक अने पिंगलशास्त्रीय कृतिओ रचेली छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.६, पृ.१९९-२१२. अहींनां त्रणे पद 'ज्ञानसारग्रंथावली' (संपा. अगरचंद नाहटा)मां पृ.५४-५५, ५८-५९ तथा ७५ पर छपायेल छे. - संपा.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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