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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह पहिलउ भाग निधिहि संचारउ, बीजउ पणि ववसाय वधारउ; तीजउ धम्मभोग निग दोस. चउथइ चउपइ पोस. ३५
वस्तु निसुणि धम्मिय निसुणि धम्मिय कूड तुल माण, कइ कूडा वय हरउ कुड लेह तह साखि कूडी; दुत्थिय दीण सुहासणिय मित्रद्रोह नहु वात रूडी, देव दविणु जो गुरु दविण भक्खय भमइ अणंत; विण संमत्तह सो भमइ, भवसंसार अणंत. ३६
ढाल
जिय आहारह तणीय सुद्धि मुणि चारित लीणउ, तिम ववहारह तणीय सुद्धि श्रावक सुकलीणउ; हाटह हुंतउ घरि पहुत जइ भोजन वार, पूजा बीजी वार करइ भाविहिं सुविचार. ३७ दीण गिलाणउ पाहुणउ ए संभाल करावइ, सइ-हत्थिहिं सूधउ आहार मुणिवर विहरावइ; ओसह वसह भत्त पाण वसही सयणासण, अवर वि जं इहंति साहु तं देइ सु वासण. ३८ जउ तिणि ठार न हुंति साहु, तउ दिसिअ वलावइ[दिसि आलोयइ होयइ], मनि भावइ आवइ सुपात्र तउ भल्लउ. होवइ; कवण कीयउ पच्चखाण आज मइं इम संभालइ, वइठउ ठामि सचित्त ठाइ आहार आहारइ. ३९ करि भोयण निद्राविहीण पिण इक वीसमइ, तो पाच्छिल्लइ पहरि पुणवि पोसालइ गम्मइ; [पढइ गुणइ वाचइ सुणेवि पूछेइ पढावइ,] अह जि वियालू करणहार सो निय घरि आवइ. ४० दिवस अठम भागि सेसि जीमेइ सुजाण, पाच्छिल दुइ घडीयाह दिवस चरिमं पचखाण; सांजइ तीजी पूज करवि सामाइक लीजइ; तउ देवसीय पडिकमेवि सज्झाय करीजइ. ४१
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