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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह पुद्गल विभावपरिणति अने ज्यां निर्जरा त्यां गलणरूप विभावपरिणति - एम बेउ ठामे पूरण गलणरूप पुद्गल विभावधर्म थयो. अत्र वितर्क : “स्वामी ! पूरण गलण सहावो' ए शब्दार्थथी पूरण गलण स्वभावे छे, एम बोलतां तो तेमां विभाव केम रह्यो ?' गुरू कहे छे – “अहो शिष्य ! अत्र स्वभावथी बोलायुं ते सामान्यपणे परिणमनशक्तिनी अपेक्षाए कह्यु. पुद्गलपरमाणु विषे स्कंधरूप परिणमनशक्ति स्वभावे छे तो परिणमे छे, नहि तो एम अन्य द्रव्य कां नथी परिणमती ? ए एनी ज शक्ति छे, माटे स्वभाव कह्यो; तथा पुद्गलनी पूरण गलणरूप अशुद्ध सत्ता विभाव परिणति, तेम चेतननी अशुद्ध सत्ता विभावचेतना ज्ञानात्मक परिणमी ते संयोग-स्थिति पूर्ण थतां ते विभावोत्पन्न जे अनादिकालीन संबंध पुद्गलजीवद्रव्ये देशत: तेनो थाय छे वियोग, द्रव्यभाव भेदे ज्यां, ते निर्जरा कहीए.
थइ छ पुद्गल अने जीवने अशुद्ध परिणति - तेनो वियोग तेमने आपआपणी शुद्ध परिणति परिणमतां संयोग-परवियोग-रूप स्वभावकार्य करतां कोण राखे, कोण रोके ? जेम विभावपरिणति कारण पामी विभाव रूपें निज शक्ति परिणमेली हती तेम स्वभावपरिणति कारणोपदानयोग पामी स्वभावशक्ति परिणमे, त्यां अन्य द्रव्यनो सारो (आधार ?) नही, त्यारे ते परमाणु तथा जीवप्रदेशस्कंधबंध छूटे. ते पुद्गल परमाणु दशे दिशाए विखरता जाय अने चैतन्यप्रदेशपणे निरावरणपणे पोतानी शुद्ध सत्ता दर्शन ज्ञान चेतनारूप ते सर्वत्र विस्तारे. हवे जे ज्ञानचेतनाए शुद्धपणुं पोतानुं जाण्यु, जाणीने ते शुद्धोपयोग चेतना शुद्ध रूपे परिणमी, त्यारे परपरिणतिने कोण संग्रहे ? एटला काल लगी पुद्गल द्रव्य संबंधी जे परपर्याय तेने चेतन विभाव परपरिणति ते संग्रहती हती. विभावपरिणति जातां थकां पिछलो निवारो' कहेतां छेल्लो वियोग चैतन्यपुद्गलने थयो, पण ए चैतन्य-पुद्गलापेक्षाए परं-पुद्गलने नही, जे माटे पुद्गलनो विभाव ते पुद्गलविभावे अनादिअनंतरूप छे, अने जीव विषे पण जे अभव्य दुर्भव्य तेने पण अनादिअनंत स्थिति विभाव छे, ते माटे छेल्ली मकाम निर्जरा ते भव्यापेक्षाए जे माटे भव्यनो विभाव ते तिरोभावे छे ते आविर्भावापेक्षाए सादि अनंत, सत्तापेक्षाए अनादिअनंत - एम अनेक भांगा जाणवा.
हवे छेल्ली निर्जरा केवी छ ? – ते कहे छे. 'आगे' कोइ काल विषे ते परपरिणति आत्मप्रदेश संघाते संबंध संबंधे एकत्वपणे नहि परिणमें. यद्यपि जीव लोकाग्रक्षेत्रे रहे छे त्यां सिद्धपणे पुद्गलद्रव्यना स्कंध, देशप्रदेश, परमाणु सर्व भेद छ, तथा पूर्वे संसारावस्थाए जेम चेतनप्रदेश ते रूपे परिणमतां ते परिणमनसत्ता गइ ते माटे पुनबंध न थाय, अने 'यह' कहेतां ए शक्ति पुद्गलद्रव्यनी छे एटले शुं ? – ते कहे छे.
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