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अल्लकृत बार भावना
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ते संवर आत्मप(द) विषे भावी चिंतवी(ए). ८ ___ छंद : वली तेह ज भावसंवर वखाणे छे. हे जीव ! संवर ते ए ज के जे आपणा आत्मपदनो विचार विचारवो, पण ते केवो छ ? आत्मपदविचार जिहां अहो जीव ! जे पुद्गलादि सर्व परद्रव्य, तेनो नथी संचार. आत्मप्रदेश संघाते संचर, संचरण प्रवेश नथी. सर्वथा परद्रव्यनों जे शुद्ध सत्ता विषे परिणामरूप परिणाम-उपयोग ते भावसंवर, शुद्ध निश्चयनयोचित अने शुद्ध व्यवहारनयोचित ते शुद्ध सद्धर्माचारोपयोग अने शुभ संवर सराग संयमोपयोग, संयमासंयमपयोग, श्रुतधर्माचारोपयोग ए सर्व शुभ संवर - ए विपरीत ते आस्रव.
ज्यां केवळ आत्मपदनो ज विचार छे, वळी त्यां 'पंडितगुण' ते अंतरात्मपणुं - साधकपणुं - स्ववेदनपणुं, तेहथी थयो छे परिचय - ओळखाण, तेणे स्वानुभव पंडितपणे करीने मूढ कहीए ते बहिरात्मपणानो दोष निवारे छे, त्यां अंतरात्मापणारूप सहजात्मपरिणति थई छे प्रगट - मिथ्यात्वावृत तिरोभावे हतां जे स्वसंवेदकताशक्ति ते सहजपरिणति आविर्भावे थई छे त्यां कर्मकर्दम केम थाय ? अपितु न थाय. अनादिसंसिद्ध जे वस्तुस्वभाव शुद्ध रूपने पण परिणमवू जाणे जे जीव ते निश्चय संवर. ८
दुहा : '(उ)पयोगी' कहेतां आत्मा, जे आपणा उपयोगथी न्यारा जाणे छे – मन, वचन, कायाना योग प्रतें, ए आत्मा कन्हे देखवा-जाणवानी शक्तिबद्ध ते ज प्रति अने योगविषये ते आत्मशक्ति धरवापणानी शक्ति छे. जेम सूर्यकिरण पृथ्वीने विषे, तेम ज्ञान ज्ञेय विषे योग सहित जे आत्मा ते योगी कहीए, तेहनी ए रीति छे. जे सर्वे संवरभावना कही ते ज्ञानसूर्योदय वेळा प्रभात समान छे, अने वलतु जेम जेम ज्ञानसूर्यनां किरण विस्तार पामे, तेम तेम मोहांधकार नासे, कर्मकर्दम सूकाय. जेम जेम जे पुद्गल पाणी सूकाय, विखरी जाय तेम तेम विभावपरिणतिरूप पाणी सूकातां कर्मपुद्गल द्रव्य-स्युं मळी मळी संयोग करे छे तेहने निर्जरा कहे छे. तीर्थकरादि तत्त्वना जाण तेहने एटले केने निर्जरा कहे छे ? ज्यां पुद्गल द्रव्यस्कंध पर्यायरूप विभावपरिणति परिणम्यो अने जीव द्रव्यपणे विभ्रम, विमोह आदि विभावपर्याय - परिणति परिणम्यो - एम बेउने द्रव्यनी विभावपरिणति ए क्षेत्रे एक समये परस्परें कार्यकारणरूप थई प्रकृति, स्थिति, रस, प्रदेश, बंधरूप संबंधे मळी ते जीवपुद्गलसंबंधन विछडवू - बेउनी विभागसत्तानो अनादि संयोग तेहनो जे वियोग तेने तीर्थंकर गणधरादिक तत्त्ववेदी निर्जरा कहे छे. ९
छंद : अहो चेतन! निर्जरा ते तेने कहीए - तेने एटले केने ? – जे कर्म पुद्गलात्मक संयोग आत्मप्रदेश साथेनो, तेनी संबंधस्थिति पूरी थई ज्यां बंध त्यां पुरणरूप
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