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अल्लकृत बार भावना
केवल मलपरिवज्जीओ, जिह सो ठाइं अणाई, तिस उर सब रस संचरें, पारें न कोई जाईं. (७) १५
छंद आस्रव एहु ज्जिया, पुग्गल तणो पज्जाव, सहजें होइं जिया, ताकी शक्ति स्वभाव; स्वभावशक्ति सब तास केरी देखी मूढो माणए, यह सकल रचना मैं जु कीनी नांहि कोइ आन ए; तिस भर्मबुद्धि सों आप आलूझ्यो, एक खेत ही वासओ, अनादिकाल विभाव ऐसो, जाणि जियडे आस्रवो. (७) १६
८. संवर भावना
दुहा
इह जिय संवर अप्पणो, अप्पा अप्प मुणेई, सो संवर पुग्गल तणो, कम्मनिरोध हवेइ. १७ सत्तारूप जु द्रष्टि हैं, जांणि गुण परजाई, सो जिय संवर जांणि तूं, अपणो पदें सुभाइ. (८) १८
छंद संवर एहुं जिया अपने पदहुं विचार, जो परदव्व जिया, ताको नांही संचार; संचार नांही परदव्व केरो, पदहि अप्प विचारई, पंडितगुण सो भयो परचों, मुढ दोष निवारइं; सहज परणति भइ परगट, किम हुई कम्म कदंबरो, अनादि वस्तु सुभाव प्रणवें जांणि जियडे संवरो. (८) १९
९ निर्जरा भावना
दुहा (उ)पयोगी अपनें (उ)पयोगसों, न्यारें जानत जोग, आपे देख न शक्ति हैं, वाको धारण योग. २० यह योगीकी रीति हैं, मिलि मिलि करै संयोग, तासे निर्जरा कहत है, विछुर होत वियोग. (९) २१
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