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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
ते आलेख्यं छे, ते सर्वनो संग्रह एक लेख के पुस्तकना आकारमां प्रसिद्ध करवो योग्य छे. गुजराती काव्यमां सत्तरमी सदीमां तपागच्छना सकलचंदे 'बार भावना सझाय' अने खरतरगच्छना जयसोमे 'भावनासंधि' सं. १६७६मां (जैन गूर्जर कविओ, प्रथम भाग, पृ. २८० अने ४९३), अढारमी सदीमां तपागच्छना जयसोमे 'बार भावनानी सज्झाय' सं. १७०३मां (जैन गूर्जर कविओ, बीजो भाग, पृ. १२६) रचेल छे अने वीसमी सदीमां श्री रायचंद कविए गुजराती गद्यमां भावनाबोध नामनी कृति रची तेमां ते बार भावनानुं सुंदर स्वरूप आळेख्युं छे.)
[ने कर्ता- कृति 'जैन गुर्जर कविओ' अने 'गुजराती साहित्यकोश खं. १ 'मां नोंधायेल नथी. बालावबोधना कर्ता पार्श्वचन्द्रगच्छना धर्मसिंहना शिष्य कर्मसिंह (जैन गूर्जर कविओ, भा. ५ पृ. २२१ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं. १ पृ. ४८) होवानो तर्क करी शकाय केमके ए पोताने 'मुनि' तरीके उल्लेखे छे अने एमनी सं. १७६२मां रचायेली ने स्वलिखित 'मोहचरित्रगर्भित अढार नात्रां चोपाई' मळे छे. जोके खातरीपूर्वक आ हकीकत स्थापी न
शकाय.
संपा. ]
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९०. अथ अवधुकीरति लिख्यते.
१. अनित्यभावना
दुहा
ध्रुव वस्तु निश्चित सदा, अध्रुव भाव परजाव, शुद्ध रूप जो देखीए, पुद्गल तणो विभाव. १ छंद
जीव सुलक्षणा हो, पो प्रतिभासिउं आज, परिग्रह पर तणा हो, तासों को नही काज; कोई काज नांही, परहुं सेती सदा एसो जानीइं, चैतन्यरूप अनूप निज धन तास सो सुख मानीइं; पि पुत्त बंधव सयल परियण पथिक संगी पेखणा, समणाण दंसण सो चरितह रहइं जीव सुलक्षणा. ( १ ) २
२. अशरण भावना
दुहा
अशरण वस्तु जु परिणवण, सरण सहाय न कोइ, अपनी अपनी शक्ति के, सबे विलासी जोइं. (२) ३
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