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________________ अल्लुकृत बार भावना (कर्मसिंहकृत बालावबोध साथे) (१. अल्लु नामना कविए अनित्यत्व आदि बार भावना पर हिंदी भाषामां दोहा अने छंद मळीने ३८ पद - कडीओ रचेल छे. ते कवि कोण हतो अने क्यारे थयो ते जाणवाने कंई साधन उपलब्ध थयु नथी. भाषा जूनी हिंदी छे तेथी ते बनारसीदासना समयमां थयेल होय तो ना नहीं. तेना पर बाळावबोध थयेल छे तेथी ते कृति खास समजवा जेवी रहस्यवाळी होवी घटे एम अनुमान थाय छे. रचनारमा आध्यात्मिक भाव खीलेलो होई ऊंडा उद्गार बहार आवेला छे एवं ते कृतिनो अभ्यास करतां जणाय छे. २. आ हिंदी कृति पर कर्मसिंह नामना मुनिए गुजरातीमां बाळावबोध लखेल छे. तेनी आदिमां पार्श्वचंद्रने सद्गुरु तरीके नमस्कार कर्यो छे. ते पार्धचंद्र ते सं.१५८६थी १६००मां थयेल अने नागोरी तपागच्छनी शाखा पायचंदगच्छना स्थापक हता. (जुओ जैन गुर्जर कविओ, प्रथम भाग, नं.१०८ पृ.१३९). आथी बाळावबोधकार ते पार्श्वचंद्रना शिष्य या तेनी शिष्यपरंपरामां थयेल एक मुनि छे. बाळावबोधमां मात्र पदनो अर्थ न आपतां विस्तारवाळू पण मुद्दासर विवेचन करेलुं छे अने 'नोकषाय' ए दिगंबर संप्रदायमां मळतो शब्द वापरेल छे ते परथी दिगंबर आम्नायना ग्रंथोथी ते परिचित होवा जोईए. तेनी भाषा पोताना समयनी शुद्ध संस्कारी छे तेथी चालु प्रचलित भाषामां मूकवामां थोडोघणो जूनां रूपो वगेरे बदलवा जेटलो फेरफार करवामां आव्यो छे. मूळ कडीओनी अंकसंख्या जे भावनाना संबंधमां ते छे ते भावनाना आंकडा प्रमाणे छे ने बाळावबोधमां पण ते प्रमाणे छे. में तेना आंकडा कौंसमां मूकी तेनी साथे सळंग संख्या पण बतावी छे. ३. आ बाळावबोध सहितनी एक प्रत आचार्य श्री विजयमोहनसूरिना स्थापित वडोदराना श्री मुक्तिकमल जैन मोहन ज्ञानमंदिरमाथी तेमनी कृपाथी प्राप्त थयेल छे. अने ते उपयोगी धारी में उतारी लीधेल छे. ते साफ अने सवाच्य अक्षरोमां सं.१८००मां नव पानामां लखायेली छे. ए लख्या साल करतां बाळावबोध अने कृति प्राचीन छे ए स्पष्ट छे. ४. आध्यात्मिक विकाराक्रममां भावना अति अगत्यनो भाग भजवे छे. धर्मना चार प्रकार नामे दान, शील, तप अने भावना. एमां भावना जोके छल्ली मूकी छे छतां दान, शील अने तप ए दरेकमां भावनानुं ज महत्त्व छे. 'यादृशी भावना तादृशी सिद्धिः - जेवी भावना तेवी सिद्धि - ए सूत्र सामान्य व्यवहारमा प्रसिद्ध छे. श्री भगवद्गीतानुं वाक्य 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः' अर्थात् बंध अने मोक्ष- कारण मनुष्यने मन: ज छे - ए पण सुविदित छे. एम अनेक दृष्टिथी विचारतां भावनानुं गौरव जबरुं छे. ५. प्राचीन आचार्योए प्राकृत अने संस्कृतमां अनित्यादि बार भावनानुं स्वरूप जुदीजुदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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