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धरमसीकृत १४ गुणस्थान स्तवन
ढाल : श्री संखेसर पास जिणेसर पहेले अंशे आठम गुणठाणा तणे, आरंभे दोय श्रेणी संक्षेपे ते भणे, उपशमश्रेणि चढे जे नर उपशमी, क्षपक श्रेणी क्षायक प्रकृति दशक्षय गमी. २३ ज्यां चढता परिणाम पूरव गुण लहे, अठम नाम अपूर्वकरण तिणे कहे, शुक्ल ध्याननो पहेलो पायो आदरे, निर्मल मन परिणाम अडग ध्याने धरे. २४ हवे अनिवृत्तिकरण नवमो गुण जाणिये, ज्यां भाव स्थिर रूप निवृत्ति ना आणिये, क्रोध मान ने माया संज्वलनरहेणे, उदय नहि जिहां वेद अवेदपणे तिणे. २५ जिहां रहे सूक्ष्म लोभ कांईक शिव अभिलखे, ते सूक्ष्म संपराय दशम पंडित दखै, शांत-मोह इण नाम इग्यारम गुण कहे, मोह-प्रकृति जिण ठाम सहू उपशम लहे. २६ श्रेणि चढ्यो जो काल करे किणही परे, तो थाये अहमिंद्र अवर गति आदरे[नादरे], चार वार समश्रेणि लहे संसारमां, एक भवे कोइ वार अधिक न हुवे किमे. २७ चढी अग्यारमी सीम शमी पहेली पडे, मोह उपर उत्कृष्ट अरध पुद्गल रहे. क्षपकश्रेणी अग्यारम गुणठाणो नहि, दशम थकी बारम चढे ध्याने रही. २८
___ ढाल : एक दिन कोई आयो मगध पुरंधर पास एहनी क्षीणमोह नामे गुणठाणो बारम जाण, मोह खपायो नेडो आयो केवळनाण, प्रगटपणे ज्यां चारित्र अमल यथाख्यात, हवे आगे तेरम गुणस्थान तणी कहे गत. २९ घातीय चोकडी क्षय गइ रहीय अघाती तेम, प्रकृति पंचाशी जेहनी जूना कप्पड जेम, दर्शन ज्ञान वीर्य सख चारित पांच अनंत, केवलज्ञान प्रगट थयो विचरे श्री भगवंत. ३० देखे लोक अलोकनी छानी परगट वात, महिमावंत अढार दूषणरहित विख्यात, आठे वरसे उणी कही एक पूरव कोडि, उत्कृष्टी तेरम गुणठाणे ए थिति जोडी. ३१ करी शैलेशी करणी निरूंध्या मन वच काय, तेणे अयोगी अंत समे सह प्रकृति खपाय, पंचै लघु अक्षर उचरतां जेहनो मान, पंचमगति पामे सुख सौ चौदम गुणस्थान. ३२ तीजे बारमे तेरमे मांहि न मरे कोइ, पहेलो बीजो चोथो परभव साथे होइ, नारक देवनी गतिमां लाभे पहिला चार, धुरिला पांच तिरियमें मणुए सरव विचार. ३३
कलश एम नगर बाहडमेरमंडण सुमति जिन सुपसाउले, गुणठाण चौद विचार वो भेद आगमने भले, संवत सतर ओगणत्रीसे श्रावण वदि एकादशी, वाचक विजयहर्ष सांनिध कहे एम धरमसी.
[जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स हेरल्ड, जून १९१७, पृ.१७३-७५]
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