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मानविजयगणिकृत
सात नयनो रास [कवि तपगच्छना शांतिविजयना शिष्य छे. एमनी कृतिओ सं.१७२५थी १७४१नां रचनावर्षो दर्शावे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.४, पृ.३५९-६५ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१, पृ.३०८. आ कृति पर टबो पण नोंधायेलो छे - संभवत: कर्तानो स्वोपज्ञ.
_ 'हेरेल्ड'ना पाठमां कडी १७४ पछी १९० छे. वच्चेनो भाग खंडित छे. पण नवाईनी वात छे के 'जैन गूर्जर कविओ' (भा.४, पृ.३६०-६१)मा ए भागनी केटलीक कडीओ उद्धृत थई छे. अहीं ए समावी लीधी छे. उपरांत ला.द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनी हस्तप्रत क्र.८२१३ (ले.सं.१८३२)माथी बाकीनी खूटती कडीओ उमेरी लीधी छे तथा पाठशुद्धि अने पाठांतरमां पण एनो लाभ लीधो छे. जोके ए प्रत पण केटलेक स्थानोए अशुद्ध होवानुं देखाय छे. - संपा.]
श्री गुरूचरणकमल अनुसरी, श्री श्रुतदेवी रीदय धरी, तत्त्वरूचीनइ बोधन काजि, करूं नयविवरण गुरू साहाजि. १ सूत्र-अर्थ सविनय संमति, संदरभित छइ श्री जिनमति, आवश्यक नियुक्ति अश्यु, देखी कहिवा मन उल्लस्यु. २ नयें करीने सयल पयत्थ, विचारवा बोल्या छे तत्थ, नयविचार करवो ते माटि, जिम पामो समकितनी वाटि. ३ जो एणें न विचारे अर्थ, तो तस सूत्र भण्यां सवि व्यर्थ, युगतायुगति भासे विपरीत, महाभाष्य मांहीं कही रीति. ४ सूत्रे कह्यं षडविध व्याख्यान, तेहमां एहवी पदादिक भान, ग्रंथ विशेषावश्यके अश्युं, ते पंडितजनरीदये वस्यु. ५ श्रुतज्ञांनइ ति एहने अधीन, एहथी हुइ निज मति पीन, .. ए चउथो अनुयोग-दुआर, एहनो छे बहुलो विस्तार. ६ चरण करण जे धरतो सदा, स्वसमय संभालें नवि कदा, निजपर समय विवेचन करी, आत्मतत्व न निहाळें फिरी. ७ चरण करण तस जाइ वद्यं, संमति ग्रंथमांहिं इम का, नयविचारथी ते तो होय, ते माटि अभ्यासो सोय. ८ भावनज्ञानें एहथी मिलें, सुद्ध मारगि दुरमतमति टले, विसंवाद वरजीत हुइ बुद्धि, सकल तत्त्वनी पामे शुद्धि. ९
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