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________________ ज्ञानमेरुकृत कुगुरुछत्रीशी चोपाई Jain Education International न करे क्रिया सूद्ध सज्झाय, मादह जिम छूटे मुख खाय; अहिनिशि सिज्या संथारिशी किम० २७ करे पुस्तक चेलारूं काम, श्रावक पासे राखे दाम; ( मुनि जशविजय संग्रह) ५१३ इम भोला जन संभारसी. किम० २८ अर्थविहूणी सोभ न होइ, एहवी वात जाणे सहु कोइ; कहावे पाठक वाणारसी. किम० २९ भलो कुगुरूथी कालो साप, आगे कोई न करे संताप; कुगुरू अनंत भव लगि मारिसी. किम० ३० कुगुरू गावे समकित नग्ग, कालो मुह तसु नीला पग; जातां कुगति न आधारसी. किम० ३१ आप न चाले सूधे माग, सुधा साधां सुं करे लाग; न्यायमति कदे न धारिसी. किम० ३२ पीवे राबडीया ने दूध, जाणे मुगति जाईसि सूध, तिणि न करे नवकारिसी. किम० ३३ इह परभव-सुं जास न काज, धीठा न करे किणनी लाज; तेहने जिन क्युं सिक्कारसी. किम० ३४ सीख कहे ज्ञानमे मुनि ईसी, भविका लागे अमृत जिसी; जे मनमांहि न संभारिसी. किम० ३५ [जैनयुग, मागशर - पोष १९८६, पृ. १८० - ८१] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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