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________________ ५१२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह चवदसि रे दिन चव वार, खूणे बेसी करे आहार; करे चोथि नोरता बारसी. किम० १२ महा माई खेतल अंबाई, जपति रहे जिनधर्म विहाई; ते मिथ्यात्व किमे वारसी. किम० १३ ओषध मंत्र तंत्र ने यंत्र, साधु प्रयुंजे नही कुतंत; कहे जोतिष निज व्रत डारिसी. किम० १४ करे पीठी लगावे तेल, दिनमांहि नाहवे दो वेल, लाइ फूलेल देखे आरसी. किम. १५ केसर चंदननी करावे खोल, पहिरे झीणा वस्त्र अमोल; __ ईम देही जे संगारसी. किम० १६ घरि पहिरण न हूंता त्रापडा, पछे वणावे सखर कापडा; फूलडी जाल तिहां कारिसी. किम. १७ हीयडामाहि नही जिनधर्म, दे उपदेश, वधावे[२] कर्म; मातो करे निर्भय सारसी. किम. १८ साधुवचननो एह विवेग, सुणि सुणि मन जागे संवेग; कहे दोहा विरही संहारसी. किम० १९ रास धमाल विरह चउपइ, कहे वखाण विषे मति दई; सुणि सुणि रीझे नार सी. किम० २० आगे नारी पु(ठे) नारी, मूसक हसे मनमें सविकार; तिहांथी दृष्टि न जे डारसी. किम० २१ लिंगिनि विधवा संगे दोष, समकित-नाश कह्यो निरघोष; तेह-सुं रमी जनम हारिसी. किम० २२ जेहवो-वंत अने उच्चार, तेहवो आधा कर्म आहार; - स्वाद अरथे जे मुनि आहारसी. किम० २३ साधु सरस आहार न लेए, शीलरत्न-राखण मति देए; सर्वथी भजने वारिसी. किम० २४ क्रोध लोभ माया ने मान, करे सदा न करे धर्मध्यान; कर्म-अगिनि ते स्युं तारिसी. किम० २५ विरति नही को नही पचखाण, कूडो लंपटी निपट अजाण; ते गुरू नरके संचारसी. किम० २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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