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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
देवलोकि बारे सुविचारि, पर्वतकूट तणइ अधिकारि, शाश्वत जनसंख्या सुणि जाण, बोल्या जिनप्रासाद प्रमाण. ७४ मोटां काज प्रतिष्ठा तणा, तीरथ जिनयात्रादिक घणां, डाहु मुनि जु तेडि उजाई, घणउ लाभ लाभइ तिणि ठार. यात्रा तणी घणी छई साखि, नवि कीजइ ते अक्षर दाखि, रथयात्रा राउ संप्रति तणी, बीजी अवर हुई अति घणी ७६ मुनिनई चैत्य- भगति एवडी, बोली छइ सुणज्यो जेवडी. गामि नगरि पहुतु किणि ठाय, दीठूं चैत्य न वउली जाई. पइठउ जिनप्रासाद मझारि, देखइ आशातना अपारि, भमरी मंदिर झाझां जाल, पडक़ोलिआ तणां चउसाल. ते ऊवेखी जाई किवारि, प्रायश्चित गुरू लागई च्यारि, जउ फेडइ तु लहुआं जाणि, चैत्य-भगति करतां सी कांणि. जिनतीरथ रथयात्रा कही, चैत्य- भगति मुनिवरनईं सही, छेदग्रंथि ए अक्षर ईस्या, ते मझ हिअडई गाढा वस्या. रिषिनईं पूजानुं उपदेस, देतां दोष नहीं लवलेस, भद्रबाहु जे श्रुतकेवली, तिणि आवश्यकि बोलिउं वली. वईरसामि परि कीधी किसी, जोज्यो हृदय विमासी तिसी, नगरी माहेश्वरी मझारि, संघ भणई सहिगुरू अवधारि आविउं परव पजूसण आज, बौद्धमती राजानुं राज, तिणि राखी मालीनी कोडि, श्वेतांबरनई लागइ खोडि. जाणी फूल न मूकिउं एक, वइरसामि मनि धरइ विवेक, या पदमद्रहि हरख्या हीइ, लक्ष्मीदेवि कमल करि दीईं. ८४ पंथि हुताशन वन अभिराम, आपइ यक्ष कुसुम बहु ताम, कुसुम कमल आप्यां संघनई, जिणहरि जिण पूज्या इक मनई. ८५ स्नात्र महोत्सव केरा जंग, करतां हिअडइ धरिज्यो रंग, जिनवर - जनम - समय जव होई, अच्युत ईंद्र तणी परि जोई. ८६ शिखर जिन लेइ जाई, चउसठि इंद्र मिलइ तिणि ठाइ,
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आई कमल सहस - पांखडी, जोतां सुख पामइ आंखडी. ८७ भरिआ कलसला निर्मल नीर, न्हवीउ जिनवर साहसधीर, जंबूदीव पनत्ती जिहां, ए आलावउ विगतिईं तिहां. ८८
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