SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोकाशाह अने लोंकामतविषयक काव्यो ४९१ सोपारइ पट्टणे छई जेअ, आदिनाथनी प्रतिमा तेअ, विस्तर कहितां लागई वार, तिणि कारणि कहूं बोल बिच्यार. ५९ राउ उदायन जगि जयवंत, प्रभावती राणीनू कंत, वीभई पाटणि विलसई राज, लावू खोड, सरिआं सवि काज. ६० विज्जुअमालि तणी मोकली, गोसीरष चंदनी भली, जीवत प्रतिमा वीरह तणी, प्रगटी पेखि नमइ नरधणी. ६१ जेहनई मनि संदेह लगार, जोज्यो दसमई अंगि विचार, .. वली अपूरव बोलूं वात, चेला मणग तणउ जे तात. ६२ प्रतिमा देखि हुइ प्रतिबुद्ध, तिणि लीधुं चारित्र विशुद्ध, दशवैकालिकनुं करणहार, सिज्जंभव गिरूउ गणधार. ६३ अंग उपासक मांहे पेखि, समकितनुं आलावउ देखि, नव श्रावक सरिसु आणंद, लिई समकित, दिइ वीर जिणंद. ६४ परतीरथि जिनप्रतिमा ग्रही, आज पछी ते वंदू नहीं, इणि अक्षरि जाणई जिनमती, जिनप्रतिमा सही आगई हती. ६५ छेदग्रंथ अति रूअडउ होई, कलपसूत्र सविशेषु जोई, तिहां बहु सुख बोल्यां सोहिलां, पणि दस जिण दर्शन दोहिलां. ६६ धुरि तीर्थंकर जाणे सही, छेहडइ जिनवरप्रतिमा कही, आठ वचन जे विचिलां अछइ, भविअण पूछी लेज्यो पछई. ६७ ए दसनु परमारथ सुणउ, दीठई लाभ हुइ अति घणउ, प्रतिमा पेखि आर्द्रकुमार, क्रमि क्रमि पामिउ मोख-दुआर. ६८ लिखी पूतली देखी भीति, राग वसई रागीनई चीति, जिम जिनप्रतिमा-पय मन वसई, तिम समकित अधिकू उल्लसई. ६९ छेदसूत्र अक्षर अभिनवा, जिनप्रासाद करावई नवा, ते सुरलोक जिहां बारमु, हुई सुरपति कई सुरपति समु. ७० मूलसूत्र आवश्यक सार, अंग उपासकमांहि विचार, ठामि ठामि अक्षर छइ घणा, जिनप्रासाद करावा तणा. ७१ छइ गणिविज्ज पयन्नू जिहां, जिनपूजानां महुरत तिहां, आगइ इम बोल्या जिनराज, ते कुमती नवि मानई आज. ७२ जंबूदीव-पनत्ति जाणि, देविंदत्थु पयन्न वखाणि, त्रीजइ अंगि वली अवलोइ, जीवाभिगम भली परि जोइ. ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy