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नित्यलाभकृत महावीरस्वामीनां पांच कल्याणक
[कवि अंचलगच्छना सहजसुंदरना शिष्य छे अने एमनी कृतिओ सं.१७७६थी १७९८नां रचनावर्षो दर्शावे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.५, पृ.२९४-९८ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१, पृ.२२२. सं.१७८१मां सुरतमां रचायेली आ कृति 'जैन प्रबोध पुस्तक' तथा 'जैन सज्झायमाला भा.१' (बालाभाई)मां छपायेल छे. - संपा.]
दोहा प्रेमे प्रण, सरसति, मागुं अविचळ वाण, वीर तणा गुण गायशुं, पंचकल्याणक जाण. १ गुण गातां जिनजी तणा, लहीए भवनो पार, सुखसमाधि होय जीवने सुणजो सहु नरनार. २
___ ढाळ १ : गर्भकल्याणक
चालो गरबे रमीए रूडा राग शुं जो - ए देशी जंबूद्वीपना भरतमां जो, रूई माहाणकुंड छे गाम जो; ऋषभदत्त माहण तिहां वसे जो, तस नारी देवानंदा नाम जो. १ चरित्र सुणो जिनजी तणां जो, जेम समकित निर्मळ थाय जो, अष्ट महासिद्धि संपजे जो, वळी पातक दूर पलाय जो. च. २ ऊजळी छठ आषाढनी जो, योगे उत्तराफाल्गुणी सार जो; पुष्पोत्तर सुविमानथी जो, चवि कूखे लीयो अवतार जो. च. ३ देवानंदा तेणी राणीए जो, सूतां सुपन लह्यां दस चार जो; फळ पूछे निज कंतने जो, कहे ऋषभदत्त मन धार जो. च. ४ भोग अरथ सुख पामशुं जो, तमे लहेशो पुत्ररतन्न जो; देवानंदा ते सांभळी जो, की, मनमां तहत्ति वचन जो. च. ५ संसारिक सुख भोगवे जो, सुणो अचरिज हुओ तिणि वार जो; सुधर्म इंद्र तिहांकणे जो, जोई अवधि तणे अनुसार जो. च. चरम जिणेसर ऊपन्या जो, देखी हरख्यो इंद्र महाराज जो; सात आठ पग सामो जइ जो, एम वंदन करे शुभ साज जो. च. ७ शक्र स्तव विधि-शुं करी जो, फरी बेठो सिंहासन जाम जो; मन विमासणमां पड्युं जो, चित चिंतवे सुरपति ताम जो. च. ८
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