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________________ ३३ वस्तिगकृत वीश विहरमान जिन रास पंचम क्षेत्रि महाविदेह, नरेसूयां, वंदिसु जिनवर च्यारि, वयरसेन सामिअ गायसिउं ए, नरे०, सामिअ तिहुअणनाह. नरे० १ महाप्रभो जिनवर अछइ ए, नरे०, सामिअ देवाधिदेव, देवयशो सामी नमू ए, नरे०, हैडलइ भाउ धरेवि. २ अजितवीर जिण वंदिसिउ, छंडवि दुख संसार तणा, नरे०, जिव शिवनयरीयं जो[जा]इं, सपरिवारा प्रभु वांदिसिउं ए, नरे०, सामिअ वीस जिणिंद, दिइं सुख सिद्धिई घणा, नरे०, त्रोडे सो भवकंद. ३ मान-प्रमाण सिव हूं समां, नरे०, सरिखु छइ समाचार, संसारसमुद्र-तारण तरंडो, नरे, सामिअ गुणह अपार. ४ सिंहासणि सामिअ समोसरणि, नरे०, अमीयं-वाणि वरसंत, भवदह-दाह जि अल्हवइ ए, नरे०, शिवपुरि लेइ मूकंति. ५ कालउं-गहिलउं वीनवउं ए, नरे०, तुम्हचउ सेवक होइ, मूरखि पढीयां आशातना ए, नरे०, ते सहू क्षमा करेउ. ६ लोटा-गणे वस्तिग भणइ ए, नरे०, सामिअ वीनती अवधारि, कर्म-नटावई नचावीउ ए, नरे०, चऊदह रज्जह मझारि. ७ ते भव-बीहतउ वीनवउं ए, नरे०, सामिअ करउ पसायउ, एतलउ मागउ लाजतउ, नरे०, दिउ अमरापुरि ठाउ. ८ वीस जिणेसर गायसिउं ए, नरे०, लेसिउं नामउच्चार, चिहूं गति मीडउं वालि ए, नरे०, छूटिसु भवसंसार. ९ तारामंडल जां अछई ए, नरे०, अनइ सूरिजचंद, तेम एउ नंदउ सूरिगुरो, नरेसूया, चउविह संघ आणंद. १० - इति विंशति विहरमान रास समाप्ता. छ. (मुनि जशविजय संग्रह, पत्र २-१३) [जैनयुग, आषाढ-श्रावण १९८६, पृ.४३८-४०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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