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________________ ३२ Jain Education International ते नर सूधई धन्न भावइ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह सलखणा जे, तुम्ह सेव करंति, जे नमईं ते संसार तरंति. १० [ठवणि ३] २ ३ धातकी खंड मझारि, आठ तीर्थंकर विहरमान, सामिअ ए संसार तारंति, सइंप्रभु ऋषभ हउं नमउं. १ जिणवरू ए अणंतवीर, दिइ सुख अणंता ए, निमलू ए करउं सरीर, धरउ ध्यान सामी तणूं ए. लीजइ ए नाम उच्चार सुर देवो विशाल जिन, तारइ ए भव-संसार, विजयधरो [ वज्जधरो] चंद्राननूं ए. सामिअऊ ए करई विहार, देव कमल संचारई ए, ऊपर ए ढलई [ चालइं] छत्र, आगलि चमरं ढलंतिया ए. सरसीय ए देवह कोडि अंग- उलग सामीयं करई ए, राखऊ ए भव भमंडत, वलीय वलीय ते इम भणई ए. अतिसय ए हुइ चउत्रीस, विहरमान तित्थंकरहं, तहि नरु ए धन्न ते दीस, पायकमल सामी नमई ए. वस्तु ५ ६ धन्नु भूमिय धन्नु भूमिय साहु सुपवित्त, धन नरवई धन देस तहिं, जिणं जिनवर विहरंति, समोसरण देसण सुणईं, नितु नवा उच्छव करंति, विहरमान तित्थंकरहं, सामिअं वीस जिणंद, त्रिभुवन तुम्ह सेवा करइं, आवइ चउसठ्ठि इंद्र. ७ सेवक वीनवई तुम्ह तणउ, सामि वीनती अवधारि, आठ जिणेसर वि (ह) रमान पुख्खर दीप मझारि. १ बंदउ सामीय चंदप्पहो, वंदउं भूअंगदेव, कसमल पापह छोडवउं ए, करउ संसारह छेह. २ सामीयं इसर प्रणमइ ए, सामीयं मुगतिदातार, समरउं सामिअ नेमिप्रभो, जिम पामउं भवपारो. ३ त्रिधा शुद्धि जे नमई ए, सामिअ सुगति - दातार, पंचम गतिहिं ते गमई ए, छंडइ एह संसार. ४ For Private & Personal Use Only ४ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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