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________________ वस्तिगकृत वीश विहरमान जिन रास ३१ पंचक्षेत्रि सर साठ जिनवर विहरंता, दसइ क्षेत्रि दस होइ, सर सतरि मिलंता, यूसमताणट जोअ प्रभावो, निसुणइ श्री संघ करीय पसाउ, हुआ नव कोडि केवलधर दिनकर, नवइ सहस कोडि मुनि चारितधर. ८ वस्तु अवधारि सामिअ अवधारि सामिअ श्री सीमंधर स्वामि, तुम्ह दरसणि विण हीडीउं, अनंतकाल बहु दुख पामिय, भव भमंतइ लध्धु मइ गुरू सुसाधु जिनवर सुसामिअ, भरतक्षेत्रि-थउ वीनवउं, सामिअ-सुं अवधारि, भव भमंतउ ऊमनउ, जामण मरण निवारि. ९ [ठवणि २] हिव पुण दूसम जाणीइए, एवडउ अंतरि निहालि, पंच महाविदेहि वीस जिण विहरइं संपइ कालि. १ दुन्नि कोडि केवलह धरह, पंच क्षेत्र विहरंति, दुन्नि सहस कोडि मुणिरयण, निर्मल चारित पालंति. २ पहिलइ क्षेत्रि महाविदेहे, जंबूदीप मझारि, विहरमान तित्थंकरहं वंदिसु जिनवर च्यारि. ३ त्रिभुवनतिलक सुसामीय ए, श्रीअ सीमंधर स्वामि, श्री युगमंधर बाहु सुबाहु, जाइं पाप लिई नामि. ४ त्रिहु ज्ञाने सिउं अवयरिअ, इंद्रिहिं किउ उछाह, पूरव लाख चउरासीयह, आउखउं जगनाह. ५ सामिअ रूप सुवन्नमइ ए, पांचसईं धनुष प्रमाणि, देव रचइं समोसरण, योजन वाणि वखाणि. ६ बारई पर्षदि बइंसई तिहां, बइसई सुरवइ इंद्र, अमिअ-वाणि देसण सुणई, ए अमूलई भवकंद. ७ सुरनर पन्नग भुवनपते, जोइसी देव मिलंति, असंख्य कोडि देवह तणीअ सामिअ-सेव करंति. ८ धन्नु ते नर धन्नु ते नर धन्नु ते नारि, जे तुम्ह पायकमल नमई, सामिय सभां जिणंद, समोसरण देसण सुणइ, सुर नर पन्नग इंद्र. ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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