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नित्यलाभकृत महावीरस्वामीनां पांच कल्याणक
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जिन चक्री हरि रामजी जो, अंत प्रांत माहणकूळे जोय जो; आव्या नहीं, नहीं आवशे जो, ए तो उग्र भोग राजकूळे होय जो. च० अंतिम जिणेसर आविया जो, ए तो माहणकूळमां जेण जो; ए तो अच्छेराभूत छे जो, थयुं हुंडावसर्पिणी तेण जो. च० १० काळ अनंत जाते थके जो, एहवां दस अच्छेरां थाय जो; ईण अवसर्पिणीमां थयां जो, ते कहीये जे चित्त लाय जो च० ११ गर्भहरण उपसर्गनो जो, मूळ रूपे आव्या रवि चंद जो; निष्फळ देशना जे थई जो, गयो सौधर्मे चमरेंद्र जो. च० १२ ए श्री वीरनी वारमां जो, कृष्ण अमरकंका गया जाण जो; नेमिनाथने वारे सही जो, स्त्रीतीर्थ मल्ली गुणखाण जो च० १३ एकसो आठ सिध्या ॠषभने जो, वारे सुविधिने असंयत्ति जो; शितळनाथ वारे थयुं जो, कूळ हरिवंशनी उत्पत्ति जो. च० १४ एम विचार करे, इंदलो जो, प्रभु निच कूळे अवतार जो; तेहनुं कारण शुं अछे जो, यम चिंतवे हृदय मझार जो.
चरित्र सुणो जिनजी तणां जो. च० १५
ढाळ २ : आसो मासे शरद पुनमनी रात जो ए देशी
भव म्होटा कहीए प्रभुना सत्तावीश जी, मरिची त्रिदंडी ते मांहे त्रीजे भवे रे जो; तिहां भरत चक्रीसर वंदे आवी जोय जो, कूळनो मद करी निच गोत्र बांध्युं तेहवे रे जो. १ ए तो माणकूळमां आव्या जिनवर देव जो, अति अणजुगतुं एह थयुं थाशे नहि रे जो; जे जिनवर चक्री आवे निच कूळमांय जो, छे आचारधरू उत्तम कूळे सही रे जो. २ एम चिंती तेड्यो हरिणगमेषी देव जो, कहे माहणकुंडे जइने ए कारज करो रे जो, छे देवानंदानी कूखे चरम जिणंद जो, हर्ष धरीने प्रभुने तिहांथी संहरो रे जो. ३ नयर क्षत्रिकुंड राय सिद्धारथ गेह जो, त्रिसलाराणी तेहनी छे रूपे भली रे जो; तस कूखे जइ संकमावो प्रभुने आज जो, त्रिसलानो जे गर्भ छे ते माहणकूळे रे जो. ४ जे इंद्रे कह्युं तेम कीधुं ततक्षण तेण जो, ब्याशी रातने आंतरे प्रभुने संहर्या रे जो, माहणी सुपनां जाणे त्रिसला हरिने लीध जो, त्रिसला देखी चौद सुपन मनमां धर्या रे जो. ५ गज वृषभ अने सिंह लक्ष्मी फूलनी माळ जो, चंदो सूरज ध्वज कुंभ पद्मसरोवरू रे जो; सागर ने देवविमान ने रत्ननी राशि जो, चौदमे सुपने देखी अग्नि मनोहरू रे जो. ६ शुभ सुहणां देखी हरखी त्रिसला नार जो, परभाते उठीने पियु आगळ कहे रे जो. ते सांभळी दिलमां राय सिद्धारथ नेह जो, सुपनपाठकने तेडी पूछे फळ लहे रे जो. ७
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