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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह ____ ए उपमितिभवप्रपंचादिकनां वचन, पनवना साथे विरुद्ध अनाभोगपूर्वक (छे?)' एवं लख्यु छे ते पूर्वाचार्योनी आशातनानुं वचन, जिनशासननी प्रक्रिया जाणे ते केम बोले ? १३
'अभव्य व्यवहारीआथी तथा अव्यवहारीआथी बाह्य छे' एवं पण व्याख्यानविधिशतकमां लख्यु छे ते पण कल्पना मात्र ज. [जे माटइ अव्यवहार निगोदमां अभव्यनी विवक्षा नथी, आपातमात्रइ संभव हो तो हो, पणि बहुथी बाह्य कल्पना नथी.] १४
___ 'अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व आभिग्रहिक सरखं आकरूं' एवं तत्र जे लख्यं छे ते पण न घटे, जे माटे योगबिंदु प्रमुख ग्रंथमां अनाभिग्रहिक आदि धर्मभूमिका [गुण] रूप दीसे छे. १५
'मिथ्यात्वीने देवाराधन अध्यवसाय जीवहिंसादिक अध्यवसायथी पण घणुं दुष्ट' एवं सर्वज्ञशतकमां लख्यु छे, ए एकांत ग्रहवो ते खोटो, जे माटे आदि धार्मिकने साधारणदेवभक्ति, योगबिंदु प्रमुख ग्रंथमा संसारतरणनो हेतु कही छे. १६
'मिथ्यात्वीना गुण ते सर्वथा ज गुणमां न गणाय' एवं कहे छे ते पण न घटे; जे माटे मिथ्यादृष्टिना गुण आव्ये ज सुंधुं पहेलुं गुणठाणुं होय, एवं योगदृष्टिसमुच्चय ग्रंथमां कडं छे. १७
___ 'परसमयमां न कही, ने स्वसमयमां कही एवी क्रिया, सुपात्रदान, जिननी पुजा, सामायिक, प्रमुख मार्गानुसारीपणानुं कारण' एवं कर्तुं छे ते पण एकांत न घटे, जे माटे उभयसंमत दयादानादिक क्रियाए पण मार्गानुसारिपणुं योगबिंदु प्रमुख ग्रंथमां कडं छे. १८
'उत्कर्षथी अपार्धपुद्गलपरावर्त्त शेष संसार होय, ते ज मार्गानुसारी' एवं लख्यु छे ते पण विचारवं, जे माटे उपदेशपदमां वचनौषधप्रयोगकाळ, चरम पुद्गलपरावर्त्त ज कह्यो छे तथा योगबिंदु, वीसवीसी प्रमुख ग्रंथानुसारे पण एक चरम पुद्गलपरावर्त मार्गानुसारीनो काल जणाय छे. १९ _ 'सम्यक्त्वथी घणो ढुकडो ज मार्गानुसारी होय ते संगम-नयसारादिक सरखो ज, पण बीजो न कहीए' एवं कहे छे ते न घटे, जे माटे अपुनर्बंधक १, सम्यक्दृष्टि २, चारित्री ३, ए त्रण शास्त्रे धर्माधिकारी कह्या छे ते तो आपआपणे लक्षणे जाणीए पण एक एकथी ढुकडापणानो तंत नथी ते माटे जेम सम्यग्दृष्टि चरित्रथी वेगळो पण पामीए, तेम मार्गानुसारी सम्यक्त्वथी वेगलो पण होय ते वातनी ना नहीं. २०
'मिथ्यात्वीनी दया व्याधादिकना मनुषपणाने सरखी' एवं लख्युं छे ते महाद्वेषनुं
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