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________________ ४४५ उदयचंदकृत देशदेशनी नारीओनुं वर्णन चालि कर चरण ऊघाडां सीस रे, गडबड गाइ निशदीस; घी चोपडे ने तेल खाइ रे, तिहां कहो कुण जाई ? ७१ दुहो जाति न को प्रगट तिहां, कांदी सहुई खाइ; भाजी भाखरी भोजने, पत्राले प्रीसाइ. ७२ चालि विषयवांछा ना निवारे रे, सुंदर देह समारे; पंच भरतारी पनोती रे, मलयागिरि मान-वदीती. ७३ श्लोकः बंगदेशे हि प्रमदा, चित्रिणी देहकोमला, मिष्टान्नभोजनी ज्ञाता, मृदुवाणी प्रीभाषिणी. ७४ चालि मदनपूतली सम दीसे रे, पदमिणि देखी मन हीसे; भमरा केडि न मूंके रे, मुनिनां मन न चूके. ७५ श्लोकः जले शुक्ति: स्थले हीरा, वने मत्ता च दंतिनः, गृहे पद्मिणी नारी, धन्यदेशो हि सिंहल:. ७६ .. चालि कामरू देसि कुहाडि रे, प्रीउने बांधे झाडि; नर ना लेखे आणइ रे, बईल करी नाथि तांणइ. ७७ श्लोक: गोडदेशेषु या रामा, चंचला हंसगामिनी; गीतनादरता नित्यं, बिनयावनतकंधरा. ७८ चालि भोट मोट करणाटक कलीआ रे, अंग तिलंग अटकलीआ; भली भली धरती दीठी रे, सवारथि सहूइ मीठी. ७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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