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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
(८०थी ८४ लखेल नथी.)
देस सकलनो सिणगार रे, गुज्जर मंडल मनोहार; आंबा राइण रूख जिहां झाझा रे, भोगी भमर नर बसे ताजा. ८५ सहु सुहातुं बोले रे, कदही अवगुण न खोले; कदाचि कुवचन बोलाई रे, फिरि पाछी पस्ताइ ८६ आप का ना विणसाडइ रे, ते नयणे सरग देखाड ; विधि विवहार (न) चूकई रे, हठि भराणी ऊडाडइ फूकि. ८७ वरणवतां लागइ वार रे, ग्रंथ तणउ वाधइ विस्तार; सेठजी, जे चित जाणउ रे, ते देसनी बहु घरि आउं८८ [जैनाचार्य श्री आत्मानंदजी जन्मशताब्दी स्मारक ग्रंथ, १९३६, गुजराती विभाग पृ. १९२ - ९६ ]
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