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________________ ४४४ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह दुहो खोले झोले मोकली, गंभीर नही लवलेस; सकार न को सुंदरी, कुछित कासी वेस. ६२ _ चालि सिद्धी सिंधुनी खोल्ली रे, सुभ-असुभ न वेइ भोली; बोले बंध नही बीजो रे, साची वाति मत खीजो. ६३ दहो खीजो मत खळं बोलतां, सिंधू न को सकार; पुन्य पाप प्रीछे नही, वत्रि न को विकार. ६४ चालि नवकोट मारू देसि रे, सुवनीत सीलि सुवसेसि; सुध शील सुंदर आचार रे, अयुक्त न बोलइ किवारि. ६५ दुहो वारिं वदने नारी तणे, वास कीउ विनाणि; प्रथक् प्रथक् पुहचे नही, तिणि नीर न को निह्वाणि. ६६ चालि रंगे वेस धरे विशेषे रे, मुख चरण नर न देखे; दाता भुक्ताने उपगारी रे, एहवी मरूदेसनी नारी. ६७ दुहो गाहा गूढा गीत रस, सुघड ने सुकलीण; गुण राचे विरचे नही, वयण न भाखे दीण. ६८ चालि दक्षणी दाखिणविहुणी रे, सघळी दीसे उंणी; हलद्रने रंगे राचे रे, मान मूके द्राबीइ काचे. ६९ दुहो काचह काबली करि धरे, सेला पहिरणि चीर; पांनफूले पूरी रहे, सुरहां तैल सरीरि. ७०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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