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________________ ४४३ उदयचंदकृत देशदेशनी नारीओनुं वर्णन चालि लखलखती लाड देसी रे, मिथ्यातणि अभिनिवेसी; भलुं देखी मुह मचकोडे रे, जू मारे ने लीख फोडइ. ५३ दुहो लाड देसी लबाड, मुहछुटी माटुं लवे; जमतां जडे कमाड, लाड तणी रमणी तिका, ५४ चालि ईडर देस नई दांते रे, खल खंचे न को खांते; ‘राज्य' ‘राज्य' कही मुखि बोले रे, रातिदिवस डींग डफोले. ५५ दुहो मोटी नारि नर नान्हडा, जुगती न को जोड; वडनगरि नारी नागरी, प्रीउ न पुहचे कोड. ५६ चालि 'आभस्यो' 'आभस्यो' ऊचरती रे, दिनराति रहे फिरती; ताति पीआरी मीठी रे, निलज नारि ए मिं दीठी. ५७ दुहो बोकड देस बंभण घणा, न लहे पीआरी पीड; रामा मस्त ने नर रांकडा, लीध न मुके चीड. ५८ चालि प्रीती भली परिपाले रे, चतुराईए गुण अजूआले; प्रिउ-स्युं आपे प्रांण रे, सोरठडी सुंदरि सुजाण. ५९ दुहो सोरठडी सिरदारि, दूहे-स्युं दिल भेलवे; लोचन-लटका बारि, बीजी को आवे नही. ६० चालि कछ देसी ज्याडेजी नारि रे, भोग-त्रिपति नहीं लगार; प्रीउ वादि बोले रे, विण अवसर अवगुण खोल्लइ. ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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