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________________ ३९१ तपगच्छनी पट्टावली तेनी टीका रची. एवामां श्री थंभण पास प्रगटकारक वि.सं.११४५मा श्री गोपनगरे श्री अभयदेवसूरि स्वर्गे गया. त्यार पछी केटलाक वर्षे गूर्जर देशे यवन राज्य थयो त्यारे श्री सकल संघे मली सप्रभाव बिंब जाणी वि.सं.१३६२ वर्षमा श्री खंभायत नगरे सारा ठेकाणे घणे यत्ने श्र थंभण पास स्थाप्या. नीलुप्पल सम नीलवर्ण देहधारक सकल क्षुद्रोपद्रववारक ते बिंब आज लगी सप्रभाव छे. कडुं छे के - जयत्यसौ स्तंभनपार्श्वनाथ: प्रभावपूरैः पूरित: सनाथः, [विघ्नसधन्वंतरणैव येन कुष्ठोपतापोऽभयदेवसूरी,] स्फूटीचकाराभयदेवसूरियो भूमिमध्यस्थितमूर्तिसिद्धं. आ रीते श्री अभयदेवसूरि थई गया. इति. श्री अभयदेव सूरि संबंध. सिद्धराज जयसिंह : पुन एवामां वि.सं.११५२मां श्री जयसिंहदेवे श्री सिद्धपुर नगर वास्युं. अग्यार माले करी श्री रूद्रालय थाप्यो. पुन: श्री सुविधिनाथ नवमा तीर्थंकरनो प्रासाद निपजाव्यो. स्वदर्शन अवरदर्शन पोषी घणुं सुकृतइ द्रव्य कीधो. वि.सं.११५४ वर्ष वृद्ध तटाक १७ कराव्या. ४१ जलनी दीर्घ वापिका निपजावी; कुंड बंधाव्या, ६७ लघुतटाक; दर्भावती, साहेली[सहेली], झंझूवाडा, प्रमुख नगरमा ८ गढ बंधाव्या. लधुवापिक १०२१, विराम[विश्राम स्थान १०६८, देवदेवीयक्ष-प्रासाद एक लक्ष निपजाव्या. एवामां गूजरे अणहिलपत्तनाधीश श्री जयसिंहदेव राज्ये श्री कोटिक गच्छे चंद्रकुले वज्रशाखामां श्री देवचंद्रसूरि तेहना शिष्य श्री हेमचंद्रसूरि प्रगट थया. हेमाचार्यनी उत्पत्ति: गूर्जरदेशमा धंधुकानगरमां मोढ ज्ञाति गोत्रमा सा साचो रहे छे तेनी स्त्री चंगी नामे, तेनो पुत्र चंगदेव नामे छे. त्यां विहार करतां श्री देवचंद्रसूरि आव्या. श्री सूरिनो धर्मोपदेश सांभळी तेणे चंगदेव नामे वणिकपुत्र परमश्रावक थयो. तेहनो वि.सं.११४५वर्षमां जन्म थयो. अनुक्रमे तेणे गुरूसंयोगे पांचमा वर्षे वि.सं.११५०मां दीक्षा लीधी. सोमदेव ऋषि नाम कीg, श्री गुरूए महाकृपाए. अनुक्रमे गुरू श्री देवचंद्रसूरि अने शिष्य ऋषि सोमदेव ए बंने कलिंजर नामे पर्वतमां कोईक औषधीने शोधवा गया त्यां मार्गमां श्री मलयगिरिसूरि मळ्या. त्यांथी कुंभारीया गामे जता थकां तटाके धोबी वस्त्र धोतो दीठो. पद्मनीचीर देखी पुछ्युं त्यारे ते वस्त्रक्षालके गुरूने का, 'आ गामनो श्रेष्ठी तेहनी स्त्री छे. तेनां (चीर) पखालूं छु.' आ गाममा चोमासुं रह्या. केटलाक दिने ते गृहस्थ श्रीमाली ने पद्मनीना मुख आगळ विद्यासाधन- रहस्य कडं. ते श्रीमालीए अंगिकार कर्यु.. श्री जिनशासननी भक्तिनो हेतुए शुभदिने श्री ऋषभदेव प्रासादे भूमिगृहे श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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