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________________ तपगच्छनी पट्टावली ३८१ आ सांभळी गुरू कह्युं, 'ते तो काले व्याख्यानमां आवीने गया.' त्यारे विरोधी राजाए कयुं, 'तमे केम मने कह्युं नहि ?' गुरूए कह्यं, 'संघ समक्ष अमे कह्युं के आम ! आवो, आम, आवो ! पुनः अमे कह्युं के तूअरी. पुनः तमे कह्युं के एना हाथमां शुं ? त्यारे अमे कह्युं के ए बीजोरां, एटले आमने नामे आम राजा जाणवो. पुनः तु अरि कहीतां तमारो ए शत्रु; बी जोरा कहेतां तमे पण राजा अने ए पण राजा, वळी ए राजा पण ए जातनो श्लोक पूर्ण प्रतिज्ञानो बारणे सकल लोक देखतां लख्यो छे. आ सांभळी आमशत्रुए विचार्य के शत्रु सांकडमां आव्यो हर्तो पण तेना पुन्यथी ते कुशळ गयो. प्रतिज्ञा संपूर्ण थये संघनी आज्ञा लइ गुरू ग्वाले (ग्वालीअर) नगरे आव्या. आम राजा शालामां महोत्सवथी पधराव्या. महा हर्ष पामी श्री बप्पभट्टी सूरी मुखथी राजाए बार व्रत उचर्या. एकदा गुरूने आमे कह्युं, 'तमे श्री गुरू मारा उपर कृपा करी कई आ जीव उपर सुकृत थाय तेम कहो !' त्यारे गुरूए कह्युं, 'आ असार संसार तेहमां अढार दोष रहित श्री जिनेश्वर, तेनी भक्ति ए ज सार, जे थकी प्राणीने सद्गति थाय. कह्युं छे के, कारयति जिनानां ये तृणावासमपि स्फुटं, अखंडितविमानानि ते लभंतेऽत्र विष्टपे. ते गुरू-उपदेश सांभळी ग्वालेर नगरमां एकसो ने आठ गजना [ उंचो] प्रसाद निपजावी तेमां श्री वीरबिंब सं. ७५६मां भूमिगृहे [ थाप्यो] अने श्री बप्पभट्टीए प्रतिष्ठा करी. ळी आम राजा श्री सिद्धगिरिए ऋण लक्ष मनुष्यनो संघाधिपति थई यात्रा करी. १२ १/२ कोडी सुवर्णनी सुकृति करी श्री जैन धर्म आराधी आम चहूआण सं. ७६०मां स्वर्गवास पाम्यो. पुनः श्री सूरिने बाल्यावस्थामां ७०० गाथा सूर्योदये मुखपाठे चढती ना घोषना शोषथी सात शेर घृत आहारमां जरतुं. श्री वीरात् १३३५ एटले सं. ७६१मां श्री गोपाचलाधीश राजा श्री आमप्रतिबोधक श्री बप्पभट्टिसूरि स्वर्गे गया. यः तिष्ठति वरवेश्मनि सार्द्धद्वादशस्वर्णकोटिनिर्मापिते आमराज्ञा गोपगिरो जयति जिनवीरः ॥ २८. मानदेवसूरि : पोताना देहनी असमाधिथी चित्तथी श्री सूरीमंत्र विसरी गया. केटले दीने श्री सूरिने समाधि थई त्यारे श्री सूरी गिरिनार पर्वते आवी बेमासी चोविहार तप कर्यो. अंबिकाए आवी कह्युं, 'आ शा माटे?" त्यारे सूरिए कह्युं, 'मारा देहे असमाधि थई थी सूरिमंत्र चित्तथी विसरी गयो छु' देवीए सूरीमंत्र संभारी वीजया देवीने पूछी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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