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________________ ३८२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह श्री सूरीने सूरिमंत्र कह्यो. विद्यासमृद्र-हरिभद्रमुनींद्रमित्रः सूरिर्बभूव पुनरेव हि मानदेवः, मांद्यान्प्रयातमपि योऽनघसूरिमंत्रं लेभेऽम्बिकामुखगिरा तपसोज्जयंते.. २९, जयानंदसूरि : श्री सूरिना उपदेशथी सं.८२१मां श्री हमीरगढे, विज्जानगरे, ब्रह्माणी, नंदीय ब्राह्मणवाटक मुहुरि श्री पास ईत्यादि श्री संप्रतिकारक नवशत प्रासादनो जीर्णोद्धार प्राग्वाट मंत्री सामंते कीधो. पुन: वि.सं.८४१थी मांडी ८४५ सुधी पंच दुकाली थई. ते अवसरे घणा साधुमर्यादाथी शिथिल थया त्यारे [उ.] श्री गोविंद,[उ०] श्री संभति. श्री दुष्यगणि क्षमाश्रमण, उग्र तपस्वी श्री क्षेमर्षि, मलधारीगच्छ श्री हपतिलक, श्री स्थूलिभद्रवंशे श्री हर्षपुरीगच्छे श्री कृष्णर्षि प्रमुख गीतार्थ मळी श्री सूरिना वचनथी समय विषम जाणी महानगरे शुभस्थानके सिद्धांतना भंडार थया; ज्ञानयत्न कीधो. पुनः सं.८६१मां श्री करहेडा नगरे श्री पार्श्वनाथनो प्रासाद थयो. उपकेश भूत गोत्रे कोठारी खिमसिंघे कराव्यो. एवा अनेक सुकृत श्री सूरिना उपदेशथी थया.. ३०. तत्पट्टे श्री रविप्रभसूरि : वि.सं.९२९ वर्षे दिल्ली चहूआण थया. तुअरने दिल्लीथी काढ्या. सं.९५२मां श्री नाडउल नगरे श्री नेमिबिंबनी सूरिए प्रतिष्ठा करी. ए अवसरे दंडनायक श्री विमल प्रगट थयो. विमल संबंध: श्री गुर्जर देशमा वढीआर खंडे पंचासरा गामथी आवीने वनराज चावडो सं.७९५मा वणोद नगर वसावी रह्यो, पण चारे दिशामां भयंकर वन देखी उदासी थयो त्यारे श्री वीरनिर्वाण पछी १२७२ वर्षमा एटले सं. ८०२मां अणहिलवाड पाटण वसाव्युं. त्यारे विमलना वृद्ध पिताने गाम गांभूथी तेडी लावी श्री वनराजे पाटण मध्यममां वसाव्या. तेना वंशमां प्रा.दो. वीरो तेनी भार्या वीरी कुखे सं.९४५मां विमलनो जन्म थयो. अने ८ वर्षथी ११ वरस सुधी हाटमा वेपार को. १३मां वर्षे श्री धर्मघोपसूरिनो उपदेश सांभळ्यो सं. ९...मां श्री पत्तनाधीश श्री भीम राजाए बाणपराक्रम जाणी प्रधानपद आप्यु. ४ वर्ष सुधी देश साध्यो.[वर्ष....४ देश साध्यो.] सं.९....वर्षमां द्वादश म्लेच्छ छत्रोद्दालिक सकलभूपचूडामणि बिरूदधारक चंद्राउली, आरासण नगर स्थापक, पुन: वि.सं.९८८मां श्री धर्मघोषसूरि नागिंद्र, चंद्र, निवृत्ति, विद्याधर प्रमुख सकल आचार्य मळी श्री अर्बुद उपर नवीन प्रासादकारक, तेमां श्री वालीनाह [बालानाह] क्षेत्रपाले आपेल श्री ऋषभबिंब स्थापक, पुन: आरासणे श्री नेमिबिंब स्थापक, अन्य एकादश शत महाप्रासादकारक, अढी हजार जीर्णोद्धारकारक. एवा सं.९६१ वर्षमां श्री गिरिनारासन्न श्री जीर्णदुर्गाधिपति राखेंगारनो जन्म थयो. सं.९८९मां पोरू वणिक प्रत्ये द्रव्य दई विमले द्वादश गोत्र प्रति प्राग्वाट कीधा. सं.९९१मां सोमपुरा वाडवने विमले द्रव्य दई शिलावट कीधा. सं.९९३मां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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