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________________ तपगच्छनी पट्टावली ३५१ के जे २१ कोस लांबु, २१ कोस पहोळु, अने जेमां ४ वर्ण ६ दर्शन ३६ पाखंड वसी रह्या छे, ज्यां वेदव्यास थिल्ल [धम्मिल] विप्र तेनी स्त्री भद्दिला (हारिद्रायण गोत्रथी उपजेली) तेनो पुत्र उत्तराफाल्गुन नक्षत्रे जन्म पाम्यो. नाम सुधर्मा राख्यु. अनुक्रमे यौवनावस्थामां वक्षसगोत्रनी एक कन्या परणावी तेथी सांसारिक सुख भोगवतां एक पुत्री थई. हवे सुधर्मा ४ वेद सांगोपांगनो पाठी छे. तेनी पासे ५०० विद्यार्थी वाडवसुत विद्याभ्यास करे छे पण ते सुधर्माना चित्तमां एक महासंदेह छे अने ते संदेह श्री वीरवचनथी नि:संदेह थयो त्यारे ५०० छात्र युक्त ५० वर्ष गृहस्थपणुं भोगवी संशयछेदक श्री वीरहस्ते दीक्षा लीधी. ४२ वर्ष शिष्यपणे श्री वीर-विनय कीधो. [एतला वर्ष बाणु छद्मस्थपद भोगवी, पुन: वर्ष आठ केवलीपद भोगवी, एवं सर्व आयु वर्ष सोनो संपूर्ण. मास एक चउविहार अणसण. पांचमे आरे पश्चिम दिशि श्री वीरने मुक्ति हुआ पछी वीसे वर्षे श्री गिरनारपर्वतोपरि श्री सुधर्मा नामे श्री वीरना पहेला पटोधरने मुक्ति हुइ. श्री वीरशासनोत्पत्ते: चउद वर्षे जमाली प्रथम निन्हव, सोले वर्षे तिष्यगुप्त द्वितीय निन्हव. प्रथम नाम निग्रंथी श्री वीरने प्रथम पाटे सुधर्मास्वामी जाणवा.] २. जंबुस्वामि उत्पत्ति : पूर्व दिशामां मगधदेश वत्स भूमि राजगृहि नगरी काश्यप गोत्रे श्रेष्ठी ऋषभदत्त अने तेनी स्त्री धारणीथी ५मा ब्रह्म देवलोकथी च्यवीने पुत्रपणे धारणीना गर्भमां उत्पन्न थयो. धारणीने स्वप्नं लाध्यं के जंबवक्ष फळयो-फल्यो छे. आ एंधाणथी जंबुकुमार नाम आप्यु. अनुक्रमे १६ वर्ष थयां त्यारे सुधर्मा स्वामी केवली विचरता आव्या तेना मुखे धर्मोपदेश सांभळी लघुकर्मी जीव जंबुकुमारे चो) व्रत आदर्यु. सुधर्मा केवलीए विहार कर्यो. पुत्रने भोगसमर्थ जाणी वारंवार संसारमा पडवा मातपिता कहे पण जंबु पाणिग्रहण वांछे नहि. मातपितानो हर्ष पूर्ण करवा घणा आग्रहथी उत्तम व्यवहारियानी पुत्री साथे परणाव्यो पण ते साथे स्नेहदृष्टि मांडे नहि. संसारिक मृदुवचन बोले नहि. हावो मुखविकार: स्यात् भावो चित्तसमुद्भवः, विलासो नेत्रजो ज्ञेयो विभ्रमो भ्रूसमुद्भवः. आवी आवी कामचेष्टाथी अंग देखाडे पण जंबु दृष्टि जोडे नहि. एवामां घणा मनुष्यना मुखथी जंबु घेर ९९ क्रोड सुवर्णद्रव्य आव्या सांभळी प्रभव नामनो चोर पल्लिवी ४९९ चोर लई रात्रे जंबु घेर द्रव्य लेवा पेठो. घरना छुटक चोकमां द्रव्यनो ढग करेलो जोई अवस्वापिनी विद्याथी सकल घरना मनुष्यने निद्रामां नाख्या. पछी तालोद्घाटिनी विद्याथी तालुं उघाडी गृहाधीशनी पेठे अबीह थका द्रव्यनी गांठडी बांधी माथे मुकी ४९९ चोर सहर्ष चित्तथी स्वस्थाने जवा उद्युक्त थया. एटलामां जंबुना शीलधर्मना महिमाथी शासनदेवीए स्तंभनी पेठे तेमने निश्चल करी दीधा अने जंबु तद्भवमोक्षपामी छे तेथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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