________________
३५२
प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अवस्वापिनी निद्रा न आवी एटले प्रभव मेडीए चड्यो अने जोयुं तो रंगशालामा जंबु नवोढा स्त्रीओने उपदेशरूप दृष्टांत कही समजावे छे, अने प्रतिबोधे छे. आ जंबुवचन सांभळी स्त्री पण प्रत्युत्तर रूपे दृष्टांत कहे छे. पण संसारविरक्त थका द्रव्यना ढग चोर ले छे ते सामु जोता नथी. आ मोटुं अचरज जोइ लघुकर्मी जीव प्रभव जंबुकथक दृष्टांत सांभळी मनमां विचारे छे के धन्य आ जंबुकुमारने के ९९ कोडि कनक अने नवोढा नव कन्याथी वेगळो छे. धिक मुजने के हुं राजपुत्र कहेवाउं छु, भिल्ल संगे रही घणा जीवने दृढ बंधन तथा दृढ प्रहार करी त्रासे महा दु:ख आपुं छु तो मारी शी गति थशे ? आq विचारी प्रतिबोध पामी ४९९ परिकर सहित प्रभव आवी जंबुने नम्यो एटले शासनदेवीए ते सकळनो व्रत लेवानो आशय जाणी बंधन थकी मुक्त कर्या. जंबुए पण नव स्त्रीओने प्रतिबोधी प्रभाते स्व मातपिता ९ प्रिया अने तेना मातपिता एम ५२७ मनुष्य युक्त, पुन: ९९ कोडि सुवर्ण पर मूर्छा तजी निर्लोभताए त्यागीपणुं लीधुं. ९९ क्रोड द्रव्य आ प्रमाणे : ६४ क्रोड सासरिये दायचे दीधा. ८ क्रोड मोसाळे पाणिग्रहणने अवसरे तिलक तिलके] दिधा. २७ क्रोड घरचें मूळ द्रव्य. ते तजी १६ वर्ष गृहस्थपणे रही श्री सुधर्मा-हस्ते दीक्षा लीधी. [वर्ष वीस श्री सुधर्मानो विनय शिष्यपणे कीधो. वर्ष चउमालीस युगप्रधानपदे केवलीपद भोगवी, छेहला केवली बिरुद धरावी.]
श्री वीरे स्वमुखे श्रेणिकने का के पहेला देवलोक थकी आवी आ सुर्याभदेवे नाटक कीधुं ते देवनो जीव छेल्लो जंबु नामे केवली थशे. ए वचनने अनुसारे जाणवू. [सघलो आउखो वर्ष एसीनो भोगवी, संपूर्ण, प्रभवाने स्वपाटि थापि श्री वीरमुक्ति हुआ पछी वर्ष चोसठे श्री जंबु मोक्ष हुआ. तत्र -]
बार वरसहि गोयमो सिधो वीराओ वीसहि सुहमो, ___चउसठीए जंबु वुच्छी तत्व दस ठाणा. दश बोल विच्छेद थया.
मण परमोहि [पुलाए आहरि खवग उपसमे कप्पे,
संजमतित्र केवल सिज्झणा य जंबूम्मि वुच्छिण्णा.] जंबु-उपमा :
लोकोत्तरं ही सौभाग्यं जंबुस्वामिमहामुनेः
अद्यापि यं पतिं प्राप्य शिवश्री नान्यमिच्छति. चित्तं न नीतं वनिताविकारैर्वित्तं न नीतं चतुरैश्च चोरे:, यद्देहगेहाद् द्वितीये निशीथे जंबूकुमाराय नमोऽस्तु तस्मै.
इति जंबु संबंध, द्वितीय पाट.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org